एक ऐसा गाँव जहाँ महिलाएं विधवा नहीं होती
एक ऐसा गाँव जहाँ महिलाएं विधवा नहीं होती
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मंडला: हमारे समाज में विधवा को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है. शुभ कार्यों में प्रवेश वर्जित माना जाता है, लेकिन एमपी के गोंड आदिवासी बहुल मंडला जिले का बिहंगा गाँव इसका अपवाद है. इस गाँव की कहानी दूसरी है. यहाँ कोई विधवा नहीं मिलती. यहाँ पति की मृत्यु के बाद विधवा जीवन जीने की जरूरत नहीं है|

रिवाज के अनुसार घर के कुंवारे से उसकी शादी करा दी जाती है. चाहे फिर वह देवर, जेठ या शादी लायक नाती पोते हों. अगर घर में पुरुष उपलब्ध नहीं है या वह इंकार करता है तो दूसरी प्रक्रिया अपनाई जाती है, पति की दसवी पर दूसरे घरों की महिलाएं चांदी की चुडीयाँ उपहार देती है. जिसे पाटो कहा जाता है.

इस विधि के बाद विधवा को शादीशुदा मान लिया जाता है और वह महिला पाटो देने वाली के घर चली जाती है. ऐसी बेमेल शादी में शारीरिक सम्बन्ध कम स्थापित होते हैं, यदि फिर भी सम्बन्ध बने तो समाज को आपत्ति नहीं होती|

दादा की मौत के 9 दिन बाद 6 साल के पोते पतिराम वारखड़े की शादी रिवाज अनुसार दादी चमरी बाई से कर दी गई. जब वह बालिग हुआ तो उसकी शादी उसकी मर्जी की लडकी से हुई. 75 साल की सुन्दरो बाई कुरवाती की शादी 65 साल के देवर से कर दी गई, वहीं कृपाल सिंह ने अपने से 5 साल छोटी साली होंसू बाई से कर ली| 

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