हत्यारे ने जेल में कैद रहते समय लिखी कविता, अदालत ने टाली फांसी की सजा
हत्यारे ने जेल में कैद रहते समय लिखी कविता, अदालत ने टाली फांसी की सजा
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नई दिल्‍ली: कहा जाता है कि किताबें व्यक्ति की जिंदगी बदल देती हैं। कविताओं और कहानियों से किसी का भी नजरिए को बदला जा सकता है। ऐसा ही एक मामला सर्वोच्च न्यायालय में हुई सुनवाई में प्रकाश में आया है। यहां तीन जजों की एक पीठ ने एक बच्‍चे के अपहरण और हत्‍या में दोषी पाए गए आरोपी की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। दिलचस्प बात तो ये है कि ये मुमकिन हो सका हत्‍या के दोषी द्वारा जेल में बंद रहते समय लिखी गई कविताओं के कारण।

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सरकारी समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार ध्‍यानेश्‍वर सुरेश बोर्कर नाम के इस दोषी ने 22 वर्ष की आयु में एक बच्‍चे का अपहरण करके उसको मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद ट्रायल कोर्ट ने आरोपी फांसी की सजा सुनाई थी। बांबे उच्च न्यायालय ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया था। इस पर ध्‍यानेश्‍वर की ओर से शीर्ष अदालत में मौत की सजा के विरुद्ध याचिका दायर की थी।

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लगभग 18 साल से ध्‍यानेश्‍वर जेल में ही सजा काट रहे हैं। इस दौरान उन्‍होंने जेल में ही कुछ कविताएं लिखीं थीं। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय में उनकी याचिका पर सुनवाई के दौरान उनके व‍कील आनंद ग्रोवर की तरफ से तीन जजों की पीठ के सामने ये कविताएं दी गईं। वकील ने अदालत से कहा कि 18 साल जेल में रहने के दौरान ध्‍यानेश्‍वर ने न केवल सबक सीखा है बल्कि उन्‍हें अपनी गलती पर पछतावा भी किया है। 

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