मरते किसानो के परिवारों की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन
मरते किसानो के परिवारों की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन
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भोपाल : देश भर में किसान मर रहे है. सरकार एक दूसरे पर आरोप लगाकर और अधिकारी जांच की फाइल बगल में दबा कर कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते है. कही ज्यादा ही रहम दिल नेता और अधिकारी रहे तो किसान के परिवार से मिलने की जहमत उठाकर मुआवजे का आश्वासन दे देते है. बीमारी दशकों पुरानी है, इलाज आज तक नहीं मिला और अब ये बीमारी नासूर बन गई है. जिसका दंश सिर्फ किसान और उसका परिवार सहन कर रहे है. मरने वाला किसान अपने पीछे एक भरा पूरा परिवार छोड़ जाता है.

पिता, भाई या परिवार के एक सदस्य की इस तरह से मौत का बच्चो के दिल और दिमाग पर क्या असर पड़ता होगा कल्पना करना मुश्किल है. ये घटना बच्चो के मानस पटल पर ताउम्र रहेगी. बेशक समय के साथ यादें धुंधली हो जाएगी मगर जहन में कही न कही डर, दहशत, बदले की भावना या सहमा हुआ एक बच्चा उस घटना को हमेशा याद दिलाता रहेगा. इससे बच्चे के व्यक्तित्व विकास पर भी असर होगा.

बुंदेलखंड में किसानो की आत्महत्या की कहानी भी नई नहीं है, देश के अन्नदाता की ये दास्ताँ आज़ादी के बाद से ज्यों की त्यों है. सुधरने के बजाय हालात बिगड़ रहे है. आकड़ो में दिलचस्पी रखने वालो के लिए बता दे कि. देश भर में कही जहर पिता ,कही फांसी पे झूलता, कही खुद को आग लगाता किसान कुदरत और सियासत के बीच पीस रहा है. मध्य प्रदेश में वर्ष 2017 में 760 किसान और खेतीहर मजदूरों ने आत्महत्या की है. इनमें से 81 बुंदेलखंड से आते हैं. वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलों का हाल और भी बुरा है. सूत्रों के आधार पर यहां सालभर में 266 किसान व खेतिहर मजदूरों ने खुदकुशी की. इनमें 184 ने फांसी लगाकर, 26 ने रेल से कटकर या कीटनाशक पीकर जान दी. वहीं शेष 56 में कई तो ऐसे हैं, जिन्होंने खुद को आग लगाकर जान दे दी.

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