रमादान और रमज़ान पर बहस क्यों?
रमादान और रमज़ान पर बहस क्यों?
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रमज़ान शुरू हो चुके है इस दौरान सभी मुस्लमान रोज़ा रखकर दिन की शुरुआत करते है ये महीना इस्लाम धर्म का सबसे पवित्र महीना माना गया है. रमज़ान शुरू होते ही मुस्लिम धर्म के पुरुष और स्त्री रोज़ा रखकर गरीबों की भूख और उनके दर्द को महसूस करते है. इस महीने हर मुसलमान व्यक्ति सच्चे दिल से इबादत करता है और ऐसा कहा जाता है कि इस महीने सभी की दुआ कुबूल होती है. इस महीने में सभी के दुःख-दर्द को दूर करने के लिए इबादत की जाती है. रमज़ान को रमादान भी कहा जाता है इस दौरान कई लोग इस तरह की बहस करते है कि ये रमज़ान है या रमादान?

दरअसल रमादान एक अरबी लफ्ज़ है, जबकि रमज़ान उर्दू का. रमादान और रमज़ान के बारे में ये बताया गया है कि अरबी भाषा में ‘ज़्वाद’ अक्षर का स्वर अंग्रेज़ी के ‘ज़ेड’ के बजाए ‘डीएच’ की संयुक्त ध्वनि होता है जिसके चलते अरबी में इसे रमादान कहते हैं. रमज़ान एक पवित्र महीना है इस महीने में हर मुस्लमान व्यक्ति सच्चे दिल से रोज़ा रखता है.

अगर रोजा रखकर गलत काम करते है यानी झूठ बोलना, धोखा देना, बुराई करना, गलत निगाहों से दूसरों को देखते रहना या अन्य गंदे विचारों का दिमाग मे आते रहना तो इसका मतलब रोजा नहीं हुआ, यह सिर्फ फाका करना हुआ. न ही आपको इसका कोई पुण्य मिलेगा न ही आपके रोज़े का कोई मतलब निकलेगा. ख़ास बात यह है कि रोज़े का मतलब दिन भर भूखे-प्यासे रहना ही नहीं बल्कि इस दिन आपको पानी नीयत आत्मा को भी साफ रखना होता है.

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