मुनव्वर राणा की कलम से
मुनव्वर राणा की कलम से
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1. आते हैं जैसे जैसे बिछड़ने के दिन क़रीब,
लगता है जैसे रेल से कटने लगा हूँ मैं.

2. अब आप की मर्ज़ी है सँभालें न सँभालें,
ख़ुशबू की तरह आप के रूमाल में हम हैं.

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