Apr 20 2018 04:10 PM
जो मुंह तक उड़ रही थी अब लिपटी है पाँव से,
बारिश क्या हुई मिटटी की फितरत बदल गई.
डूबी हैं मेरी उँगलियाँ मेरे ही खून में,
ये काँच के टुकड़ों पर भरोसे की सजा है.
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