वित्तीय घपलों में ऑडिटर्स की भूमिका कितनी?
वित्तीय घपलों में ऑडिटर्स की भूमिका कितनी?
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नई दिल्ली: पंजाब नेशनल बैंक में हुआ हज़ारों करोड़ का घोटाला न केवल बेहद चौंका देने वाला है, बल्कि यह हमारे समक्ष कई प्रश्न भी खड़े करता है. इस महाघोटाले की सीबीआई जांच होना जनता के हितों की रक्षा के प्रति सरकार की तत्परता तो दर्शाता है, लेकिन एक सवाल यह भी है कि यह तत्परता हमेशा घटना घट जाने के बाद ही क्यों दिखाई जाती है? अगर ऐसी तत्परता जवाबदेही तय करने मे या आंतरिक कार्यप्रणाली की दक्षता जांचने में पहले ही दिखा दी जाती तो शायद ऐसे घोटाले की नौबत ही नहीं आती.

आज सबसे बड़ी आवश्यकता यह जानने और समझने की है कि ऐसे हज़ारों करोड़ के घोटाले आखिर किन खामियों और चूकों की वजह से होते हैं और क्या इन खामियों को उस स्तर पर सुधारा जा सकता है, कि दोबारा इनकी पुनरावृत्ति न हो? बैंक की आंतरिक व्यवस्था के साथ ही ऑडिटर्स (इंटरनल और स्टेटुटरी दोनों) की भूमिका पर गंभीर विचार करने की जरूरत है.   ऑडिटरों की नियंत्रक इकाई आईसीएआई ने एक कमेटी गठित कर इस घोटाले में ऑडिटरों(अंकेक्षकों) की भूमिका की जांच की बात कही है. वहीं पंजाब नेशनल बैंक ने अपने आतंरिक विवेचन के आधार पर बैंक के ऑडिटरों को दोषमुक्त बताया है. बैंकों द्वारा समय-समय पर जारी वित्तीय रिपोर्टों के अनुसार बैंकों द्वारा सभी विधिक अनुपालनों का पालन किया जाता है,लेकिन मल्टीपल लेवल पर ऑडिट होने के बाद भी ऐसे घोटालों का होना क्या ऑडिटरों की भूमिका पर सवाल खड़े नहीं करता? यह कैसे संभव है कि हजारों करोड़ का घपला हो रहा है औरऑडिटरों  को उनका भान ही नहीं है? और अगर ऑडिटरों की कोई भूमिका नहीं है, जैसा कि पंजाब नेशनल बैंक के अधिकारियों का कहना है तो फिर बैंक की आतंरिक प्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगते हैं ,जिसमें पारदर्शिता दिखाई नहीं देती.  

अब समय आ गया है कि हम उस मूल कारण तक पहुंचे जिसकी वजह से ऐसे घोटालों कोआधार मिलता है. ऑडिटरों की संलिप्तता सीबीआई जाँच के साथ अन्य सभी बैंकों की भी जांच का विषय है. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बैंक के सभी लेन-देन ऑडिटरों के समक्ष प्रस्तुत हो रहे हैं एवं किसी भी तरह की कोई सांठ-गाँठ नहीं की जा रही है. यह संभव तभी हो सकता है जब बैंक अपनी आतंरिक प्रणाली और ऑडिटरों द्वारा जारी की गई रिपोर्ट को रीकन्साइल करने के लिए प्रयास करे. एक सामान्य व्यक्ति भी यह समझ सके कि उसने बैंक में अगर पैसे जमा किये हैं तो उन पैसों का उपयोग बैंक किस प्रकार करती है? ऑडिटरों द्वारा सत्यापित किये गए दस्तावेजों को ही अंतिम निष्कर्ष मान लेना अब तर्कसंगत नहीं दिखाई देता.

देश के सभी वित्तीय संस्थानों के वित्त लेखागारों, सम्पत्तियों, दायित्वों के साथ ही उनकी आतंरिक कार्यप्रणाली की समीक्षा करना वक्त की जरुरत है. ऑडिटरों को नियंत्रित करने वाली संस्था आईसीएआई  से इस सम्बन्ध में गहन चर्चा की जानी चाहिए कि कैसे ऑडिटरों की घोटालों में संलिप्तता की जाँच की जाए. क्या कोई समानांतर संस्था देश के मुख्य वित्तीय संस्थानों में नियुक्त की जाए जो कि ऑडिटरों के कार्यों, उनके द्वारा जारी रिपोर्टों का निष्पक्ष आकलन कर सके? ऐसे ही कई सवालों के जवाब हमें आज ही ढूंढने होंगे, ताकि फिर कोई अन्य घोटाला देश की जनता के विश्वास को चोट न पहुंचा सके.

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