सरकार के कंधों पर कार्रवाई का डला बोझ
सरकार के कंधों पर कार्रवाई का डला बोझ
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जम्मू - कश्मीर के उरि सेक्टर में ब्रिगेड क्षेत्र में हमला होने और सेना के जवानों को निशाना बनाए जाने के बाद अब देशवासी सरकार से एक कड़ी कार्रवाई की उम्मीद कर रहे हैं तो दूसरी ओर विश्वभर में आतंकी कार्रवाई की निंदा की जा रही है। हालांकि माना जा रहा है कि भारत इस बार भी शांति का संदेशवाहक बनकर ही अपनी कार्रवाई को अंजाम देगा। मगर हमले के बाद से राजनीति तेज हो गई है।

हर तरफ हमले की निंदा के साथ ही सरकार विरोधी तंत्र सरकार का विरोध करने में लगे हैं। अब जब यह साफ हो चुका है कि भारत में यह हमला भी पाकिस्तान की धरती से ही किया गया है तो फिर भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किस परमिशन की बांट जोह रहा है। जिस तरह से भारत ने म्यांमार में उग्रवादियों को मारने और उनके कैंप को ध्वस्त करने की कार्रवाई की वैसे ही पाकिस्तान में संचालित आतंकी कैंपों को ध्वस्त करने की मांग भारत से की जा रही है हालांकि यहां पर भारत पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव का हवाला देते हुए भारत किसी सीधी कार्रवाई से बचने का प्रयास करता नज़र आ रहा है।

मगर देश की संप्रभुता और अखंडता के लिए यह आवश्यक है कि जिस कड़ेपन के लिए आरएसएस समर्थित भाजपा नेतृत्व वाली सरकार जानी जाती है सरकार उसका परिचय दे और आतंकियों को नियंत्रण में ले। हालांकि यह इतना आसान नहीं है कि पाकिस्तान गए और किसी आतंकी का या भारतीय सेना के जवान का सिर काटने वाले पाकिस्तानी सैनिक का सिर लेकर वापस आ गए।

मगर जब स्थितियां भारत के पक्ष में हैं तब भारत को आतंक का सफाया करना ही होगा यदि ऐसा नहीं होता है तो सरकार में बैठे प्रभुत्व वाले नेताओं को जनता केवल बयानी शेर ही मान लेगी और इसका असर आगामी समय में भाजपा के वोट बैंक पर भी पड़ने से इन्कार नहीं किया जा सकता है।

'लव गडकरी' 

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