सुप्रीम कोर्ट ने लगाई लिव-इन रिलेशनशिप पर मुहर
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई लिव-इन रिलेशनशिप पर मुहर
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नई दिल्ली: भारत की शीर्ष अदालत ने लिव-इन रिलेशनशिप पर मोहर लगा दी है, अदालत ने कहा कि शादी की उम्र नहीं तो लिव इन में रह सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले को बदलते हुए एक युवती को उसके पति से मिला दिया. शीर्ष अदालत ने केरल हाई कोर्ट के शादी रद्द करने के फैसले को पलट दिया. कोर्ट ने साफ कर दिया है कि शादी के बाद भी अगर वर- वधू में से कोई भी विवाह योग्य उम्र से कम हो तो वो लिव इन रिलेशनशिप में साथ रह सकते हैं. इससे उनके विवाह पर कोई असर नहीं पड़ेगा..

कोर्ट ने कहा अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के लिए एक बालिग लड़की का अधिकार उसके पिता द्वारा कम नहीं किया जा सकता. यहां तक ​​कि अगर लड़के की उम्र विवाह योग्य 21 साल नहीं है तो वह उसके साथ 'लिव इन' संबंध रख सकती है. पसंद की स्वतंत्रता युवती की होगी कि वह किसके साथ रहना चाहती है. यहां तक ​​कि अगर वह विवाह में प्रवेश करने के लिए सक्षम नहीं हैं तो उन्हें शादी के बाहर भी एक साथ रहने का अधिकार है.


कोर्ट ने कहा कि अदालत को मां की किसी भी तरह की भावना या पिता के अहंकार से प्रेरित एक सुपर अभिभावक की भूमिका नहीं निभानी चाहिए. दरअसल, ये मामला केरल का है. अप्रैल 2017 में केरल की युवती तुषारा की उम्र तो 19 साल थी यानी उसकी उम्र विवाह लायक थी पर नंदकुमार 20 ही साल का था. यानी विवाह के लिए तय उम्र से एक साल कम. शादी हो गई तो लड़की के पिता ने बेटी के अपहरण का मुकदमा दूल्हे पर कर दिया.

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