तो इसलिए किसी भी काम की शुरुआत पर स्वास्तिक चिन्ह अंकित किया जाता है
तो इसलिए किसी भी काम की शुरुआत पर स्वास्तिक चिन्ह अंकित किया जाता है
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ऋषि मुनियों के समय से न जाने कितने चीजों का प्रचलन हुआ है जो की अब चले आ रहा है। आज भी हिन्दू धर्म में इन चीजों की बहुत मान्यता हैं और ज्योतिष के अनुसार इनके फायदे भी देखे जा सकते हैं। हमरे शास्त्रो में स्वस्तिक चिन्हो की बहुत अहमियत होती है। जब भी घर में कोई शुभ काम होता है तो सबसे पहले स्वास्तिक चिन्ह बनाया जाता है। स्वास्तिक चिन्ह न सिर्फ शुभ संकेत होता है बल्कि सभी मंगल कार्यो से पहले इसकी पूजा अर्चना की जाती है। स्वास्तिक चिन्ह वास्तु में भी अहम होता है पूजा से पहले इसका निर्माण किया जाता है।

स्वास्तिक चिन्ह घर में सुख समृद्धि एवं धन में वृद्धि करता है। आपने देखा होगा कि लोग पूजा स्थान में अथवा किसी शुभ अवसर पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि स्वास्तिक चिन्ह शुभ और लाभ में वृद्घि करने वाला होता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार स्वास्तिक का संबंध असल में वास्तु से है।

इसकी बनावट ऐसी होती है कि यह हर दिशा में एक जैसा दिखता है। अपनी बनावट की इसी खूबी के कारण यह घर में मौजूद हर प्रकार के वास्तुदोष को कम करने में सहायक होता है। शास्त्रों में स्वास्तिक को विष्णु का आसन एवं लक्ष्मी का स्वरुप माना गया है। चंदन, कुमकुम अथवा सिंदूर से बना स्वास्तिक ग्रह दोषों को दूर करने वाला होता है और यह धन कारक योग बनाता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार अष्टधातु का स्वास्तिक मुख्य द्वार के पूर्व दिशा में रखने से सुख समृद्घि में वृद्घि होती है।

 

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