भगवान शिव अन्य सभी देवताओं में भोले माने जाते हैं, इसलिए इन्हे भोलेबाबा के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा भागवान भोलेनाथ के बहुत से रूप हैं, जिनका उल्लेख हमें शास्त्रों मे भी मिलता है। आज हम आपसे अर्धनारिश्वर रूप के बारे में चर्चा करने वाले हैं। जहां पर हम जानेंगे कि आखिर कैसे भगवान शिव का नाम अर्धनारिश्वर पड़ा। कहते हैं की जब सृष्टि की संरचना के बाद ब्रह्मा जी ने मनुष्य का निर्माण किया, तो उन्हें समझ आया, कि ये तो एक शीघ्र अंत होने वाली रचना है क्योंकि उन्होंने सिर्फ पुरुष बनाये। सृष्टि को चलाने के लिए संतति की आवश्यकता है और उसके लिए स्त्री की, पर वो है ही नहीं। तब अपनी समस्या के समाधान के लिए वो शिव की शरण में पहुंचे और कठोर तप किया।
ब्रह्मा की कठोर तपस्या से शिव प्रसन्न हुए और उनकी समस्या के हल के फल में उन्होंने अपना अर्धनारीश्वर स्वरूप प्रगट किया। इस रूप में वे आधे शिव थे और आधे शिवा। इस तरह उन्होंने मानव को प्रजनन शील बनने की प्रेणना देकर सृजन का संदेश दिया। इसके साथ ही उन्होंने अपने इस रूप से पुरूष और स्त्री की समानता के महत्व का भी उपदेश दिया। उन्होंने बताया कि स्त्री और पुरुष दोनों प्रकृति का अभिन्न अंग हैं और एक के बिना भी इसका विकास संभव नहीं है। अर्धनरनारीश्वर की आराधना का अर्थ है शिव अर्थात पुरुष और स्त्री यानि शक्ति का एका होना।
शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं, यदि शिव नर के प्रतीक हैं, तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व नहीं है। शिव अकर्ता हैं, यानि वे संकल्प मात्र करते हैं, संकल्प सिद्धी शक्ति ही करती हैं। अगर शिव कारण हैं, तो शक्ति कारक हैं, शक्ति जागृत अवस्था हैं, जबकि शिव सुशुप्तावस्था। शक्ति मस्तिष्क हैं और शिव हृदय हैं।
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