शहीद दिवस: शहीदे आजम भगत सिंह से जुडी ये बातें कोई नहीं जानता
शहीद दिवस: शहीदे आजम भगत सिंह से जुडी ये बातें कोई नहीं जानता
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आज शहीद दिवस है और सारा देश भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत को नमन कर रहा है. भगत सिंह की निजी जिंदगी से जुड़े कई ऐसे सच है जिन्हे आज तक कोई नहीं जानता. तो आईये जानिए उनकी जिंदगी के अनछूए  पहलुओं को -

आठ वर्ष की खेलने की उम्र में भगत सिंह अपने पिता से पूछते थे कि अंग्रेजों को भगाने के लिए क्यों न खेतों में पिस्तौले उगा ली जाएं. 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग की घटना हुई तो उस समय भगत सिंह मात्र 12 वर्ष के थे. महज 12 साल की उम्र में बगैर किसी को बताए भगत सिंह जलियांवाला बाग चले गए थे और वहां की मिट्टी लेकर घर लौटे थे. वे महात्मा गांधी का सम्मान तो बहुत करते थे लेकिन उनकी अहिंसा वाली पद्धति से बहुत निराश थे. लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 को करीब सवा चार बजे, एएसपी सॉण्डर्स के आते ही राजगुरु ने एक गोली सीधी उसके सिर में मारी, इसके बाद भगत सिंह ने 3-4 गोली दाग दीं. भगत सिंह का पैतृक गांव खटकड़कलां है, इनकी पढ़ाई लाहौर के डीएवी हाई स्कूल में हुई. वे कई भाषाओं के धनी थे. अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू के अलावा पंजाबी पर भी उनकी खास पकड़ थी.

अच्छे थियेटर आर्टिस्ट के साथ-साथ उनका शैक्षणिक रिकार्ड भी बढ़िया रहा. स्टेज पर उनका प्रदर्शन राणा प्रताप, सम्राट चंद्रगुप्त और भारत की दुर्दशा दिखाता हुआ होता था. भगत सिंह ने अपनी थियेटर की कलाओं को भारतीयों के बीच देशभक्ति की भावनाएं जगाने में किया. क्रांति के दिनों में भगत सिंह ने फिरोजपुर में केमिस्ट की दुकान के ऊपर क्रांतिकारियों का ठिकाना बनाया. क्रांतिकारी पंजाब से दिल्ली, कानपुर, लखनऊ और आगरा आने जाने के लिए फिरोजपुर में बने इस ठिकाने पर आकर अपनी पहचान बदलते थे. बम बनाने का सामान जुटाने के लिए क्रांतिकारी डॉ. निगम को यहां पर केमिस्ट की दुकान खुलवाई थी. जेल में भगत सिंह ने धर्म और ईश्वर के अस्तित्व को लेकर लंबा लेख लिखा. ईश्वर, नास्तिकता और धर्म को लेकर भगत सिंह का यह लेख 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में 'मैं नास्तिक क्यों हूं?' शीर्षक से प्रकाशित हुआ.

इस बात का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं मिलता कि भगत सिंह की कोई प्रेमिका थी. शादी तय करने की कोशिश से नाराज होकर भगत सिंह अपने घर से भागकर कानपुर चले गए थे. घर से जाते समय उन्होंने अपने पिता को पत्र लिखकर कहा, “मेरी ज़िन्दगी बड़े मकसद यानी आज़ादी-ए-हिन्द के असूल के लिए समर्पित हो चुकी है, इसलिए मेरी ज़िन्दगी में आराम और दुनियावी ख्वाहिशों और आकर्षण नहीं हैं,” भगत सिंह ने अपने पत्र में घर छोड़ने के लिए अपने पिता से माफी मांगते हुए लिखा है, “उम्मीद है कि आप मुझे माफ फरमाएंगे,”. जनता उन्हें आज शहीद-ए-आजम मानती है.  

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