राजगीर : देश के विश्वविद्यालयों में असहिष्णुता, पूर्वाग्रह और वैमनस्य के लिए किसी तरह का स्थान नहीं होना चाहिए। दरअसल यह बात भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कही। महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी यहां के नालंदा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में पहुंचे थे। यह विश्वविद्यालय का पहला दीक्षांत समारोह था। अपने उद्बोधन में महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय का बड़ा नाम रहा है यह विश्वविद्यालय वाद-विवाद और चर्चाओं के लिए जाना जाता है।
विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में महामहिम राष्ट्रपति ने कहा कि विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा संस्थान वाद-विवाद, चर्चा व विचारों के आदान-प्रदान का सर्वश्रेष्ठ मंच रहा है। राष्ट्रपति का कहना था कि बदलाव निश्चित तौर पर अच्छे होते हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि बिना जाने समझें हम इन्हें अमल में ले आऐ। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हमें अपनी खिड़कियां खुली रखना चाहिए मगर हवा में भी नहीं उड़ना चाहिए।
उन्होंने प्राचीन भारत की बात करते हुए कहा कि यहां पर तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला और अन्य विश्वविद्यालयों का उल्लेख किया और कहा कि यहां पर अध्ययन करने के लिए विदेशों से लोग आया करते थे। यहां के कई बौद्ध भिक्षु चीन गए थे। आज के संदर्भ में भी नालंदा विश्वविद्यालय का बहुत महत्व है। यहां पर वाद विवाद और विचार विमर्श जरूर होना चाहिए। यदि यह सब विश्वविद्यालयों में नहीं होगा तो फिर कहां होगा। यह विश्वविद्यालय आधुनिक दौर में भी ज्ञान का प्रकाश फैलाता रहे ऐसे प्रयास सभी को करने होंगे।