आप सभी को बता दें कि भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक के 15 दिन केवल श्राद्ध कर्म करने के लिए सही माने जाते हैं ऐसे में हर इंसान की यह इच्छा रहती है कि वह एवं उसका परिवार सुखी एवं संपन्न रहे. यह सब पाने के लिए देवता के साथ-साथ अपने पितरों का भी पूजन करना चाहिए तभी सब सही होता है. ऐसे में अगर पितृ शांति नहीं होती है तो बहुत नुकसान होता है और घर में क्लेश रहता है. तो आपको पितृ शांति के लिए पूजा करना जरुरी है वरना पितृ दोष लग जाता है और आपका नुकसान होना शुरू हो जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि क्यों होता है पितृ दोष, कैसे होता है पितृ दोष, कब होता है पितृ दोष..
(1) कहते हैं कि पितरों का विधिवत् संस्कार, श्राद्ध न होने पर पितृ दोष होता है साथ ही पितरों की विस्मृति या अपमान होने पर भी पितृ दोष होता है.
(2) पूज्य व्यक्तियों का अपमान करना.
(3) धर्म विरुद्ध आचरण होने पर.
(4) वृक्ष, फल लदे, पीपल, वट इत्यादि कटवाना.
(5) नाग की हत्या करना.
(6) गौहत्या या गौ का अपमान करना.
(7) पवित्र स्थान पर मल-मूत्र विसर्जन.
(8) कुल देवता का विस्मृति या अपमान.
(9) पवित्र स्थल पर गलत कार्य करना.
(10) पूर्णिमा, अमावस्या संभोग करना.
(11) पूज्य स्त्री के साथ संबंध बनाना.
(12) निचले कुल में विवाह संबंध करना.
(13) पराई स्त्रियों से संबंध बनाना.
(14) गर्भपात करना.
(15) कुल की स्त्रियों का अमर्यादित होना.
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