सिर्फ 6 महीने ही दर्शन देते है भगवान
सिर्फ 6 महीने ही दर्शन देते है भगवान
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भगवान बद्रीनारायण की दर्शन यात्रा में जितना महत्व भगवान के विग्रह का है उतना ही महत्वा पवित्र पर्वत नीलकंठ का भी है. भगवान बद्रीनाथ सिर्फ गर्मियों के छह मास ही भक्तों को दर्शन देते हैं, बाकी के छह महीने उनके कपाट बंद रहते हैं, लेकिन इस दौरान भी उनकी विधि-विधान से आराधना होती है. इसमें इंसानों के जाने की मनाही होती है.

मान्याता है, एक बार जब भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे, तो उन्हें कड़ी धूप से बचाने के लिए मां लक्ष्मी बेर के वृक्ष के रूप में उनपर तब तक झुकी रहीं जब तक वो तपस्या करते रहे. बाद में भगवान विष्णु ने उनके प्रेम और समर्पण का सम्मान करते हुए इस स्थान को बद्रीनाथ का नाम दिया, क्योंकि संस्कृत भाषा में बेर को बद्री कहा जाता है. आज भी जब कोई बद्रीनाथ धाम का उच्चारण करता है तो पहले ‘बद्री’ यानी मां लक्ष्मी का नाम आता है और बाद में ‘नाथ’ यानी भगवान विष्णु का.

इस पवित्र धाम के दर्शन भक्त केवल गर्मियों के छह महीने में कर सकते हैं, क्योंकि बाकी के 6 महीने देवता नारायण की पूजा करते हैं. इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है. कहते हैं सतयुग में नारायण बद्रिकाश्रम में साक्षात निवास करते थे.

त्रेतायुग में कठोर तपस्या करने वाले ऋषि मुनि ही विष्णु के दर्शन कर पाते थे, लेकिन द्वापर युग आने पर जब भगवान कृष्णावतार लेने के लिए जाने लगे तो न केवल ऋषि मुनि बल्कि देवताओं को भी उनके दर्शन दुर्लभ हो गए. जब लंबे वक्त तक देवताओं को नारायण के दर्शन नहीं मिले तो वो घबरा गए और विष्णु से दर्शन देने के लिए प्रार्थना करने लगे. तब विष्णु ने एक ऐसा तरीका निकाला जिससे वो देवताओं और मनुष्यों को समान रुप से दर्शन दे सकें, उन्हें पूजा और आराधना करने का मौका दे सकें.

विष्णु ने कहा कि कलियुग में जब इंसान धर्म-कर्म हीन हो जाएगा और उसके अंदर अभिमान समा जाएगा तब वो इंसानों के सामने साक्षात रुप में नहीं रह पायेंगे. ऐसी स्थिति में नारद शिला के नीचे अलकनंदा में समाई हुए उनकी एक मूर्ति के जरिए वो भक्तों को दर्शन देंगे. उनकी बातें सुनकर देवताओं ने नारदकुंड से मूर्ति निकाल कर विश्वकर्मा से एक मंदिर में मूर्ति की स्थापना करा दी. इस मंदिर का नाम बदरीनाथ पड़ा .

नारियल चढाने से होती है मनोकामना...

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