भोपाल: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा कांग्रेस और बसपा के दिग्गजों ने टिकट कटते ही दशकों पुरानी पार्टी और वफादारी को अलविदा कह दिया। जानकारी के अनुसार बता दें कि ये सियासी नेता आयाराम-गयाराम की तर्ज पर विरोधी दल से जा मिले और अपनी ही पार्टी के खिलाफ चुनावी अखाड़े में ताल ठोक बैठे हैं। वहीं बता दें कि इन बागियों ने अपने दल का नुकसान कर दिया लेकिन बढ़े हुए मतदान व उलझे चुनावी समीकरण के चलते अब उनके जीवन भर की साख और इज्जत भी दांव पर है।
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यहां बता दें कि दशकों तक जिस दल के निर्णायक मंडल में रहे उसी के खिलाफ चुनावी मैदान में ताल ठोकने वालों में पूर्व मंत्री, पांच बार सांसद और दो मर्तबा विधायक रहे सरताज सिंह एवं डॉ रामकृष्ण कुसमरिया का नाम प्रमुख है। वहीं बता दें कि कुसमरिया तो भाजपा की प्रदेश चुनाव समिति के सदस्य भी रहे, लेकिन अपना टिकट भी नहीं बचा पाए। वहीं उम्र के अंतिम पड़ाव पर सरताज को कांग्रेस का दामन थामना पड़ा, जबकि कुसमरिया ने दो सीटों से चुनाव लड़कर भाजपा के समीकरण छिन्न-भिन्न कर दिए।
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गौरतलब है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के अलावा अन्य पार्टियों के नेताओं ने भी पार्टी बदली है। वहीं बता दें कि दोनों ही नेताओं के सामने जीवन भर की साख बचाने के लिए चुनावी जीत के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा और इसी तरह दस बार लगातार विधायक रहने का रिकॉर्ड बना चुके पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने भी बगावती मुद्रा अपना ली थी, लेकिन भाजपा ने उनकी पुत्रवधु कृष्णा गौर को टिकट देकर मना लिया। हालांकि गौर यह कहने से नहीं हिचकते कि कांग्रेस की मदद से ही उनकी बहू कृष्णा को टिकट मिल पाया। वहीं बसपा से विधायक रही विद्यावती पटेल और महापौर रही रेणु शाह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में है।
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