क्या दक्षिण भारत की सपा बनेगी डीएमके ?
क्या दक्षिण भारत की सपा बनेगी डीएमके ?
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चेन्नई: 7 अगस्त को तमिलनाडु की राजनीति के दिग्गज सितारे और द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) के अध्यक्ष एम् करूणानिधि के निधन के बाद से ही एक प्रश्न लोगों के मन में उठने लगा था कि  डीएमके का अगला अध्यक्ष कौन होगा. आज उनके निधन के 21 दिन बाद उनके उत्तराधिकारी एमके स्टालिन निर्विरोध रूप से पार्टी के अध्यक्ष चुन लिए गए हैं. पार्टी प्रमुख के पद के लिए 26 अगस्त को नामांकन भरने वाले वह एकमात्र उम्मीदवार थे, वहीं द्रमुक के प्रधान सचिव दुरई मुरूगन को पार्टी का नया कोषाध्यक्ष चुना गया है.

क्या आप जानते है DMK के नए अध्यक्ष बनने वाले एमके स्टालिन की यह कहानी ?

अलागिरी के बगावती तेवर 

हालांकि स्टालिन के बड़े भाई और द्रमुक से निष्कासित नेता एम. के. अलागिरी ने धमकी दी थी कि यदि उन्हें पार्टी में वापस नहीं लिया गया तो इसके अंजाम सही नहीं होंगे. अलागिरी ने अपने छोटे भाई एम. के. स्टालिन की पार्टी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी से एक दिन पहले अपना रुख कड़ा करते हुए कहा कि वह पांच सितंबर को प्रस्तावित मार्च करेंगे और यदि उन्हें पार्टी में दोबारा शामिल नहीं किया गया तो पार्टी को नतीजे भुगतने होंगे. उल्लेखनीय है कि साल 2014 में करुणानिधि की ओर से पार्टी से निकाले जाने के बाद से अलागिरी राजनीतिक एकांतवास में हैं, उन्हें उस समय पार्टी से निकला गया था, जब स्टालिन और उनके बीच पार्टी में वर्चस्व कायम करने की लड़ाई चरम पर थी. लेकिन करूणानिधि के निधन के बाद वे फिर से पार्टी में शामिल होने की मांग उठाने लगे थे.

अलागिरी को छोटा मानती है डीएमके 

 उनकी इस धमकी के जवाब में डीएमके सांसद  टी के एस एलंगोवन ने कहा था कि एक समय था जब हमे जयललिता से बड़ा खतरा था, लेकिन एक पार्टी को सफल होने के लिए ऐसे खतरों से जूझना पड़ता है. उन्होंने कहा कि अलागिरी तो एक छोटी सी मुश्किल है, जो अपने आप कम हो जाएगी.

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सपा के भी हुए थे दो टुकड़े 

 

 आपको बता दें कि इसी तरह अध्यक्ष पद को लेकर समाजवादी पार्टी (सपा) में भी तनातनी हुई थी, जिसमे पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह और उनके बेटे अखिलेश दोनों पार्टी अध्यक्ष बनना चाहते थे, आखिर में अखिलेश ने अपने पिता को हटाकर सपा अध्यक्ष के पद पर जा बैठे और उन्हें समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का अध्यक्ष बनाकर झुनझुना पकड़ा दिया. अब इसी तरह के कुछ हालात डीएमके में भी हैं, देखना ये है कि क्या अलागिरी में राजनितिक वनवास काटने के बाद भी इतना दमखम बचा है कि वे डीएमके का तख्तापलट कर सकें, या फिर वे कुछ डीएमके कार्यकर्ताओं को लेकर अलग दल बनाएंगे. नतीजा चाहे जो भी हो, डीएमके के दो फाड़ होने के आसार ज्यादा हैं. 

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