जानिए इस सप्ताह के व्रत और त्यौहार (22 से 28 मई 2017)
जानिए इस सप्ताह के व्रत और त्यौहार (22 से 28 मई 2017)
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अगर आपको इस सप्ताह व्रत और शुभ दिनों के बारे में जानकारी चाहिए तो हम आपको बताएंगे कि इस सप्ताह कौन-कौन से व्रत और त्यौहार हैं. सप्ताह का शुभारंभ ज्येष्ठ के कृष्ण पक्ष की एकादशी के साथ हो रहा है. इस सप्ताह अपरा एकादशी व्रत, भौम प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि व्रत, शनैश्चर जयंती, वट सावित्री व्रत हैं

अपरा एकादशी (22 मई, सोमवार)
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन अपरा एकादशी का व्रत का विधान है. शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को रखने से भ्रूण हत्या, ब्रह्म हत्या सहित सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है. इतना ही नहीं इस व्रत को रखने से मकर संक्रांति पर गंगा स्नान से और बनारस में शिवरात्रि के व्रत और स्नान जितना पुण्य मिल जाता हैं. 

भौम प्रदोष व्रत (23 मई, मंगलवार)
प्रत्येक माह के दोनों पक्षों में एक-एक बार एकादशी का व्रत होता है, ठीक उसी प्रकार त्रयोदशी को प्रदोष का व्रत रखा जाता है. एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है, तो त्रयोदशी का व्रत भगवान शंकर को. त्रयोदशी का व्रत शाम के समय रखा जाता है, इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है.  शिवजी की कृपा प्राप्त करने और पुत्र प्राप्ति की कामना से इस व्रत को किया जाता है

मासिक शिवरात्रि व्रत (24 मई, बुधवार)
प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के दिन शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान शिव को समर्पित यह व्रत सब प्रकार की मनोकामनाओं को पूरा करने वाला बताया गया है. संपूर्ण शास्त्रों और अनेक प्रकार के धर्मों के आचार्यों ने इस शिवरात्रि व्रत को सबसे उत्तम बताया गया है. इसमर्थजनों को यह व्रत प्रात: काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यंत तक करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए.

शनैश्चर जयंती (25 मई, गुरुवार)
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनि अमावस्या अथवा शनैश्चरी अमावस्या के नाम से जाना जाता है. शनैश्चरी अमावस्या वाले दिन शनि देव का विशेष पूजन-अर्चन करना चाहिए. ज्योतिर्विदों के अनुसार जिन जातकों पर शनि की साढ़े साती अथवा ढैया का असर होता है उन्हें इस दिन अवश्य ही शनि को प्रसन्न करने का उपाय करना चाहिए. इस दिन काले तिल, काला छाता, काला कंबल, तेल आदि का दान विशेष लाभदायी माना गया है.

वट सावित्री व्रत/ज्येष्ठ अमावस्या (25 मई, गुरुवार)
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत का विधान शास्त्रों में बताया गया है. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस व्रत का संबंध वट के वृक्ष और सावित्री के साथ है, इसलिए इसे वट सावित्री व्रत के नाम से संबोधित किया जाता है. इस व्रत को प्राय: त्रयोदशी से पूर्णिमा अथवा अमावस्या तक किया जाता है. शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन महिलाओं को व्रत के साथ-साथ मौन भी धारण करना चाहिए. इससे महिलाओं को हजारों गौ के दान जितना पुण्य एकसाथ ही मिल जाता है. 

 

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