'रूप चौदस' या 'नरक चतुर्दशी' का महत्व
'रूप चौदस' या 'नरक चतुर्दशी' का महत्व
Share:

दीपावली से एक दिन पहले कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को ‘नरक चौदस’, ‘रूप चौदस’, ‘छोटी दीपावली’ और ‘यमराज निमित्य दीपदान’ के रूप में जाना जाता है. इस दिन अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए भगवान यमराज की पूजा की जाती है. आज के ही दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध कर 16100 कन्याओं को बंदी गृह से मुक्त करा उनसे विवाह किया था. इसलिए इसे नरक चतुर्दशी नाम से भी जाना जाता है.

रूप चौदस के महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल,चन्दन,उबटन लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर स्नान करने, फिर विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करने से पाप कटता है,नर्क से मुक्ति मिलती है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है.वर्षभर ज्ञात, अज्ञात दोषों से मुक्ति के लिए इस दिन स्नान करने का महत्व शास्त्रों में है. साथ ही ऋतु परिवर्तन से ख़राब हुई त्वचा की शुद्धि भी हो जाती है.

भगवन श्रीहरि ने राजा बलि को वरदान दिया था नरक चतुर्दशी को सूर्यास्त के पश्चात अपने घर व व्यावसायिक स्थल पर तेल के दीपक जलाने से लक्ष्मी का स्थायी निवास होगा. इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन चला आ रहा है. आज के दिन हनुमान जयंती भी मनाई जाती है. यद्यपि हनुमान जी की अवतार की अन्य तिथियाँ भी प्रचलित है.

चाइनीज़ लाईट की रोशनाई या अंधियारा

दिवाली की मिठास में कड़वाहट घोलता नकली मावा

उत्सव का नया रुप- दिवाली मिलन समारोह

 

 

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -