कैसे बना रावण भोलेनाथ का परम भक्त जानिये?
कैसे बना रावण भोलेनाथ का परम भक्त जानिये?
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ये बात तो सभी जानते है कि रावण बहुत अहंकारी पापी राक्षस था, उसने धरती पर बहुत अत्याचार किये थे लेकिन क्या आप ये जानते है कि रावण को अपने ऊपर अहंकार कैसे आया ? पौराणिक कथाओं के मुताबिक कुबेर, रावण का सौतेला भाई है और दोनों राजा ऋषि विश्र्वा कि संतान थे अपने पुत्र कुबेर के गुणों को देख कर राजा ऋषि विश्र्वा ने अपना राज-पाठ कुबेर को दे दिया था लेकिन कुछ कारण से राजा ऋषि विश्र्वा ने कुबेर राज-पाठ वापस ले लिया और अपने दुसरे पुत्र रावण को दे दिया.

तब रावण लंका का राज बना और इसी के चलते उसे धीरे-धीरे अंहकार होने लगा और साधू संत तथा आम लोगों पर अत्याचार करने लगा जब इस बात कि खबर कुबेर को चली तो उसने एक दूत को भेजकर रावण को समझाने कि कोशिश कि और उसे सत्य के मार्ग पर चलने कि सलाह दी, तब रावण ने क्रोध में आकर उस दूत को बंदी बना लिया और उसका वध करवा दिया था. रावण को अपने ऊपर इतना अंहकार हो गया था कि वह अपने भाई कुबेर कि नगरी अलकापुरी पर अधिकार करने के लिए सेना को भेज दिया और कुबेर के नगर को तहस-नहस कर दिया और इस युद्ध में कुबेर भी घायल हो गया.

इसके बाद सेनापतियों ने कुबेर को वैद्यो के पास पंहुचाया और वहां उनका इलाज करवाया, कुबेर को हराने के बाद रावण ने कुबेर का पुष्पक विमान भी छीन लिया, एक दिन रावण पुष्पक विमान पर सवार होकर जा रहा था तो एक पर्वत के सामने पुष्पक विमान की गति हल्की हो गई, तभी उनके सामने एक विशाल और काले शरीर वाले नंदीश्वर आए और उन्होनें कहा यहां शिव अपनी क्रीड़ा में मग्न हैं तुम लौट जाओ, रावण को इस पर क्रोध आया और कहने लगा कि शिव कौन है, मेरे मार्ग में आने वाला इस पहाड़ को ही नष्ट कर दूंगा.

रावण जैसे ही पहाड़ उठाने की कोशिश करता है वैसे ही भगवान शिव अपने पैर के अंगूठे से पहाड़ पर दबाव बना लेते हैं और इस कारण रावण के हाथ पहाड़ के नीचे दब जाते हैं, इस दर्द और पीड़ा में वो सामवेद में मौजूद शिव स्तुति का पाठ करता है और इससे प्रसन्न होकर शिव उसके हाथों को मुक्त कर देते हैं, इस प्रसन्नता में ही शिव जी ने दशानन कहे जाने वाले को रावण का नाम दिया. इसका अर्थ होता है भीषण चीत्कार करने पर विवश शत्रु, क्योंकि पहाड़ के नीचे रावण के हाथ दबाकर उसे भीषण तरह से जीत्कार करने पर विवश कर दिया गया था.

 

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