भारतीय महाभियोग प्रस्ताव का इतिहास
भारतीय महाभियोग प्रस्ताव का इतिहास
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नई दिल्ली : इन दिनों देश की सर्वोच्च अदालत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष द्वारा महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी की चर्चा ज़ोरों पर है .आपको जानकारी दे दें कि मिश्रा ऐसे पहले न्यायाधीश नहीं है, जिनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की तैयारियां की जा रही है.इसके पहले भी भारतीय न्यायिक इतिहास में 6 अन्य न्यायाधीशों को भी इसका सामना करना पड़ा था, लेकिन किसी को भी हटाया नहीं गया था.

संविधान के अनुसार  किसी भी न्यायाधीश को तब तक नहीं हटाया जा सकता जब तक उस पर भ्रष्टाचार या दुर्व्यवहार के गंभीर आरोप ना लगे हों.इसके अलावा एक न्यायाधीश को केवल राष्ट्रपति के आदेश से ही हटाया जा सकता है. संविधान के तहत लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों के कुल सदस्यों के बहुमत द्वारा इस प्रस्ताव को पारित होना जरुरी है.न्यायाधीश को हटाने के लिए लाए गए प्रस्ताव का बहुमत से या फिर दो-तिहाई सदस्यों द्वारा उसके पक्ष में मतदान होना अनिवार्य है.इसके बाद ही संबंधित न्यायाधीश को हटाया जा सकता है.

गौरतलब है कि भारतीय  न्यायिक इतिहास में अब तक 6 न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा चुका है .स्वतंत्र भारत में जस्टिस वी रामास्वामी के खिलाफ सबसे पहला महाभियोग 1991 में लाया गया था.उन पर 1990 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहने के दौरान अपने आधिकारिक निवास पर ज्यादा खर्च करने का आरोप था. दूसरा मामला 2011 में सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पीडी दिनाकरन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के तहत लाया गया.लेकिन  प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही उन्होंने त्यागपत्र दे दिया.इसी तरह 2011 में कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ अनाचार के आरोप में महाभियोग की कार्रवाई की गई.बाद में  उन्होंने अपना इस्तीफा तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को सौंप दिया.

इसके बाद 2015 में महाभियोग के दो मामले हुए . गुजरात हाई कोर्ट के न्यायाधीश जेबी पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया. उन पर आरक्षण के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप था,हालाँकि उन्होंने अपने निर्णय से विवादित बयान को हटा लेने पर उनके खिलाफ लाए गए प्रस्ताव को रोक दिया था .2015 में ही मध्यप्रदेश के जस्टिस एसके गंगेले के खिलाफ भी प्रस्ताव लाया गया था.उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा था.बाद में उनके खिलाफ भी कार्रवाई को रोक दिया था.महाभियोग का आखिरी मामला 2017 में हाईकोर्ट के जज नागार्जुना रेड्डी पर चलाया गया था.रेड्डी पर अपने पद का दुरुपयोग करने और एक दलित जज को प्रताड़ित करने का आरोप था. उनके खिलाफ भी प्रस्ताव इसलिए वापस लेना पड़ा, क्योंकि दूसरी प्रक्रिया के तहत केवल 9 राज्यसभा सदस्यों ने मतदान किया था. अब सातवीं बार सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाया गया है. देखना यह है कि इसका क्या हश्र होता है.

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