नीरव मोदी के नाम पर 8 हजार दे दो....
नीरव मोदी के नाम पर 8 हजार दे दो....
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"चलिए निकालिए आठ आठ हजार रुपये, मियां बीवी ओर दो बच्चे हो तो 32 हजार रुपये निकालिए." 
"किस बात के ?"
"किस बात के क्या मतलब, अरे भाई, देश के लिए इतना भी नही कर सकते क्या, देशद्रोही तो नही हो?"

देखिए, अभी नीरव मोदी और अपने मेहुल भाई भाग गए हैं और देश के सरकारी बैंको में डूबे हुए कर्ज यानी एनपीए की रकम 7 लाख 87 हजार करोड़ हो गयी है अब इसकी भरपाई देश के नागरिक को ही करनी होगी, तो 130 करोड़ भारतीयों में हर को 5,700 रुपए देना होगा और कर्जा दे देकर बैंकों का जो बुरा हाल हुआ उसे सुधारने के लिए सरकार ने 11 साल में 2 लाख 60 हजार करोड़ रुपए दे दिए. यानी हर भारतीय की जेब पर इसका बोझ पड़ा 2,000 रुपए तो कुल मिलाकर हुए 7700 रुपये ओर हमारा कमीशन 300 रुपये यानी कुल मिलाकर 8000 रुपये. 

आपको यह मजाक लग रहा होगा,  लेकिन यह बिल्कुल सम्भव हो सकता है. भारत की अर्थव्यवस्था को इन तीन सालों में जितना नुकसान झेलना पड़ा है वह कल्पनातीत है.

यह जानकारी लोकसभा में वित्त मंत्रालय ने ही दी हैं शक की कोई गुंजाइश नही है, इसलिए  बहुत ध्यान से पढ़िए कि बड़े उद्योंगों का कुल फंसा कर्ज 31 मार्च 2015 को 1.23 लाख करोड़ रुपये का था जो 31 दिसंबर 2017 को 5.28 लाख करोड रुपये तक पहुंच गया यानी 1 साल ओर 10 महीने में फंसा हुआ कर्ज 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है. क्या यह बात सोची भी जा सकती थी? क्या देश को यह जानने का हक नही है कि इसमें कितना कर्ज देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों को दिया गया है?

सरकारी बैंकों के कुल फंसे कर्ज यानी ग्रॉस एनपीए की बात करें तो ये मार्च 2015 के अंत में 2.70 लाख करोड़ रुपये था जो 31 दिसंबर 2017 को 7.87 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया. अगर निजी बैंकों को शामिल कर लिया तो ये आंकड़ा 10 लाख करोड़ रुपये को पार कर जाएगा. रिजर्व बैंक की जानकारी के मुताबिक पिछले मात्र साढ़े 5 साल में बैंकों के 3 लाख 67 हजार करोड़ रुपए राइट ऑफ किए गए हैं. राइट ऑफ का अर्थ है कि बैंक यह मान चुके हैं कि यह राशि उन्हें वापस मिलने वाली नहीं है यह कहना गलत नही होगा कि बैंकों पर इतना दबाव बढ़ गया है कि ये दिवालिया होने की कगार पर खड़े हैं.

रिजर्व बैंक के सितंबर 2017 के आंकड़ों के मुताबिक उद्योगों पर कुल  28.92 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है. यह बांटे गए कुल कर्ज का 37 फीसदी हिस्सा है. यानी अगर बैंकों ने 100 रुपए का कर्ज बांटा है तो उसमें 37 रुपए उद्योगों को दिया है. उद्योगों को मिले इस 37 रुपए में 19% एनपीए है. मतलब बैंकों के 100 रुपए में से 19 रुपए उद्योगों की वजह से डूबने की कगार पर हैं. अगर एक्चुअल रकम के तौर पर देखें तो इन 19 रुपए का मतलब है 5.58 लाख करोड़ रुपए.

यदि आप देखे तो पिछले 5 सालों में बैंकों में एक लाख से ज्यादा रकम के 5064 घोटाले हुए हैं और बैंकों को इन घोटालो में 16,770 करोड़ रु की चपत लगी, लेकिन पिछले दिनों पकड़ाया पीएनबी घोटाला अकेला अब 13,000 से ज्यादा का है. मोदी ओर चोकसी ने अन्य बैंकों से भी करीब 5 से 8 हजार करोड़ का कर्ज लिया है इस तरह यह घोटाला 15 से 20 हजार करोड़ रुपए का हो सकता है ऐसे में नीरव मोदी का एक बैंक घोटाला वह चपत लगा गया जो 5 हजार घोटाले भी नहीं लगा पाए, ऐसे अनेक घोटाले अभी खुलने वाले है.

कुल मिलाकर कहा जाए तो आने वाले 6 महीने भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत बुरे निकलने वाले हैं क्योंकि रिजर्व बैंक के साफ निर्देश है कि बैंकों को इसी महीने से 2 हजार करोड़ रुपये से ऊपर के हर स्ट्रेस्ड लोन का मामला 180 दिन के भीतर सुलझा लेना होगा. इस दौरान उन्हें कर्ज वसूली की एक योजना पेश करनी होगी, और अगर ऐसा नहीं हो सका तो संबंधित खाते को दिवालिया अदालत में भेज दिया जाएगा. बड़े पूंजीपतियो ने अर्थव्यवस्था को पहले ही डुबो दिया है बस हमे पता आज चल रहा है इसलिए 15 लाख भूल जाइए ओर 32 हजार रुपये तैयार रखिए.

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