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जनता की ऐसी की तैसी
G. S. T. या जनता की ऐसी की तैसी
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                            या  

             जनता की ऐसी की तैसी

 

बहुत पहले की बात है एक राजा था उसके राज्य में बारिश नही हो रही थी और जनता सूखे से त्राहि-त्राहि करने लगी तब राजा को लगा कही परेशान जनता विद्रोह न कर दे इसलिए उसने अपने मंत्रियो की बैठक ली. और सबसे सूखा ख़त्म करने का समाधान बताने को कहा सबने मिलकर फैसला किया कि पंडितो से जप करवाया जाये |

अब पहला पंडित आया और सोचने लगा बारिश करवाने का कौन सा मंत्र होता होगा इसी उधेड़बुन में बोलने लगा क्या करू क्या ना करू-क्या करू क्या ना करू , बस धीरे-धीरे यही जपने लगा क्या करू क्या ना करू |

जब अगले कुछ दिन में बारिश नही हुई तो फिर बैठक हुई तो कहा एक पंडित से काम नही बनेगा दूसरा भी बैठाओ अब दूसरे पंडित जी आये तो देखा पहले पंडित जी “ क्या करू क्या ना करू “ का रटन कर रहा है तो ये भी शुरू हो गये “जो ये करे सो मैं करू-जो ये करे सो मैं करू “ ये जप शुरू हो गया.

फिर तीसरे पंडित जी बुलाये गये उन्होंने देखा क्या करू क्या ना करू -जो ये करे सो मैं करू... तो वो भी शुरू हो गये ये धांधली कब तक चलेगी -ये धांधली कब तक चलेगी,

उससे भी काम नही बना.तो चोथे पंडितजी आये उन्हें भी कोई मंत्र समझ नही आया तो वो भी बाकि लोगो का सुनने लगे  “क्या करू क्या ना करू… जो ये करे सो मैं करू… ये धांधली कब तक चलेगी... तो ये भी शुरू हो गए  जब तक चले चलने दो-जब तक चले चलने दो ||

इस कथा का वैसे केंद्र सरकार की नीतियों से कोई सीधा सम्बन्ध नही है बस यू ही कल गोवाहाटी में सम्पन्न GST काउन्सिल की बैठक में वित्त मंत्री अरुण जेटली के उदबोधन को सुनते समय अपने आप ही याद आ गई जैसे किसी बच्चे को पिटता देख अपना बचपन याद आ जाता है |

साथ ही साथ मैं बहुत भावुक भी हो गया जब ये घोषणा हुई की जरूरी 177 उत्पादों पर GST 28% से 18, 12, 5 यहाँ तक की 0% भी कर दिया गया है.

8 नवम्बर 2016 की रात को मानव इतिहास में पहली बार पूंजीपति रोया और गरीब चैन की नींद सोया | इस फर्क को मिटाने के बाद जेटली जी ने एक और क्रन्तिकारी कदम उठाया और अमीर -गरीब का भेद मिटाते हुए 1 जुलाई 2017 से ‘एक देश एक कर’ प्रणाली GST का ऐतिहासिक आगाज़ किया लेकिन ऐसा करते समय भी उन्होंने आम इंसान की जरूरत का ध्यान रखते हुए दूध, फल, सब्जी यहाँ तक की आदमी और भगवान के मिलन में कोई दिक्कत न हो इसलिए पूजा सामग्री को भी GST की जकड़-पकड़ से आजाद ही रखा साथ ही साथ पेट्रोल को भी |

अब पेट्रोल को क्यों GST में नही लाया गया इस राज़ का पर्दा फाश आप स्वयं पेट्रोल पर वर्तमान में लग रहे टैक्स और GST से लगने वाले टैक्स का अध्ययन कर, कर ले| फिर भी मेरा अनुरोध है कि सरकार की नीतियों पर संदेह ना करे |

खैर फिर आते है अपने मुद्दे पर, बड़े-बड़े टीवी विज्ञापन, होर्डिंग, बेनर, कार्यशाला, और भी न जाने किन-किन तरीको के द्वारा सरकार ने जनता को GST की कठिन पहेली समझाने का प्रयास किया, कि ये प्रणाली भारत के विकास के लिए वही काम करेगी जो छोटे बच्चे की मजबूती के लिए तेल की मालिश करती है |

पर मालिश थोड़ी ज्यादा ही रगड़ के कर दी गई बच्चा रोने लगा और देश के विकास की दर गिरने लगी | आगे रही सही कसर वर्ल्ड बैंक ने पूरी कर दी, हमारे जख्मो पर नमक छिड़कते हुए कहा कि नोटबंदी और जीएसटी के कारण हमारी जीडीपी 8.6 प्रतिशत से घट कर 7 प्रतिशत रह जाएगी. विश्व बैंक ने आगाह भी किया है कि आंतरिक अड़चनो के कारण निजी निवेश कम रहा है. जिससे देश के विकास की सक्षमता पर दबाव बढ़ेगा, जिससे कमी आ सकती है. खैर डरने की कोई बात नही वो बैंक है कोई नास्त्रेदमस नही जिसकी भविष्यवाणी से हम डर जाये, हमे अपने नेताओ पर उनकी सोच पर पूरा यकीन है

खैर सरकार को लगा जनता त्राहि-त्राहि न करने लगे तो फिर बैठक हुई और जिन उत्पादों पर 28% GST पहले किया था उसे फिर कम किया गया |

इतनी महान मेहनत के बाद.अभी सरकार थोड़ी सुस्ताई भी नही होगी कि गुजरात चुनाव की तारीख घोषित हो गई, राहुल गाँधी गुजरात में भजन कीर्तन पूजा-पाठ करने लगे, आन्दोलन के हीरो हार्दिक कांग्रेसी हो गए और जनता तो पहले से ही  हिंदी फिल्मो की निरूपा रॉय के समान महगाई से रो ही रही है तो फिर सरकार ने इस महाभारत को जीतने के लिए जेटली जी को अपना सारथी बनाया और फिर पुरी निष्ठा के साथ जेटली जी ने 20000 करोड़ के राजस्व का घटा खाते हुए , 177 उत्पादों का GST कम कर सस्ता कर दिया |

राष्ट्रवादी विकास की सोच रखने वाले अरुण जेटली जी को देश समझ गया पर उनके अमृतसर वाले क्यों  नही समझ पाए क्यों उन्हें वोट नही दिया इस पर भी एक सर्वेक्षण तो होना ही चाहिए | कभी बढ़ाने कभी घटने का ये GST गेम इतना जटिल हो गया है की खुद बीजेपी के मंत्री धुर्वे जी तक बोल गये की वे खुद GST नही समझ पा रहे हैं | तो जनता सांप- सीडी की तरह ऊपर-नीचे होने वाले GST खेल को कितना समझ पायेगी ये तो ईश्वर ही जाने|

पर 2 सवाल जो मेरे मस्तिष्क की नसों में तीर की तरह चुभ रहे है आपके समक्ष छोड़ के जा रहा हु

पहला तो ये की GST लागू करते समय क्या जनता की आमदनी, जरूरत, राजस्व के आकडे, विकास दर पर प्रभाव इनका पूरा अध्ययन नही किया गया जो बार-बार टैक्स % कम ज्यादा करना पड़ रहा है या इसे बनाया ही इस तरह गया के चुनाव के समय लॉलीपॉप की तरह (+) या (-) कर जनता को लुभाया  जा सके |

और दूसरा सवाल ये की 20000 करोड़ के इस  राजस्व  घाटे को वसूला किससे जायेगा ??

आपके जवाब का इंतज़ार है

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