कई वर्षों तक कुंती ने अपने मन में छुपा के रखी थी ये रहस्य
कई वर्षों तक कुंती ने अपने मन में छुपा के रखी थी ये रहस्य
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हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में एक ग्रन्थ महाभारत है. जिसमें बहुत सी रहस्यात्मक बातों का पता चलता है. इसी ग्रन्थ में कुंती व कर्ण का रहस्य भी देखने को मिलता है. उस समय जब महाभारत युद्ध होना तय हो चुका था। दुर्योधन की तरफ कर्ण को पाकर देख कुंती बहुत परेशान सी थी कुंती नहीं चाहती थी की कर्ण दुर्योधन के पक्ष में हो और कुंती ने परिस्थितियों को देखते हुए कर्ण के सामने वो रहस्य प्रकट करना उचित समझा जिसे कुंती ने कई वर्षों से छिपा कर रखा हुआ था। 

 अब कुंती, कर्ण के महल में उससे मिलने पहुंचीं, उस समय कर्ण सूर्य देव की आराधना में ध्यान मग्न था। जब कर्ण की आराधना पूरी हुई तो उसने अपने समक्ष खड़ी महाराज पांडु की पत्नी और पांडवों की माता को देखा । उसी वक्त कुंती ने कर्ण से कहा की कर्ण तुम यह कभी मत समझना कि तुम सूत-पुत्र हो। न तो राधा तुम्हारी मां हैं और न ही अधिरथ तुम्हारे पिता।

में तुम्हे तुम्हारे जन्म का रहस्य बतला रही हूँ. तुम्हें जानना चाहिए कि तुम राजकुमारी पृथा ( पांडु से विवाह के पहले कुंती का नाम) यानी तुम कुंती पुत्र हो, मेरे अविवाहित जीवन में ही सूर्य के अंश से मेरी कोख में आ गए और तुम पैदा हुए। लोकलाज के डर के कारण मैनें तुम्हें गंगा में बहा दिया था। और तुम राधा-अधिरथ को मिले उन्होने तुम्हारा पालन पोषण किया फिर तुम उनके पुत्र कहलाने लगे । 

कुंती ने कर्ण से कहा की कर्ण तुम्हारे शरीर के ये जो कवच और कुंडल है वे तुम्हारे जन्म से ही है.तुम देव कुमार हो, फिर भी कर्ण तुम अपने भाइयों को पहचान नहीं पाए। और कहा की कर्ण एकता में बहुत शक्ति होती है. अब यदि तुम पांचों पांडव के साथ में मिल जाओ तो युद्ध में तुम्हे कोई हरा नहीं सकता है । कुंती ने कहा कर्ण तुम मेरे बड़े पुत्र हो। इसलिए मेरे अन्य पुत्र तुम्हारे अधीन रहेंगे। 

कर्ण कुंती की  बात सुनकर बोला, मां तुम्हारी ये सभी बातें धर्म के विरुद्ध हैं। मैं ऐसा कदापि नहीं कर सकता . मैं धृतराष्ट्र पुत्रों को छोड़कर नहीं जा सकता। क्योंकि उन्होंने मुझे धन, सम्मान और गौरव दिया है। मैनें दुर्योधन का नमक खाया है। उससे साथ में विश्वाशघात नहीं कर सकता.चाहे मुझे क्यों ना अपने प्राण न्योछावर करने पड़े मैं उनका ही साथ दूंगा। 

कुंती कर्ण की ये सारी बातें सुनकर उसे अपने गले से लगा लिया। कुंती की आंखों में आंसू आ गए उसने कर्ण की इस ईमानदारी से बहुत खुश हुई पर थोड़ा देर रुककर बोलीं, की कर्ण विधि के विधान को कोई टाल नहीं सकता। कर्ण को आशीर्वाद देकर कुंती अपने महल की ओर चली गईं।

 

 

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