कुर्बानी का मतलब बकरे की बलि नहीं, जानें खास बातें
कुर्बानी का मतलब बकरे की बलि नहीं, जानें खास बातें
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आज 'ईद-अल-अदा' है जिसे देशभर में मुस्लिम भाई मनाने जा रहे हैं और हर जगह जश्न का माहौल है. इस दिन खास तौर पर बकरे की बलि दी जाती है. इसके पीछे कहानी ये है कि खुदा ने हजरत इब्राहिम से अपने बेटे की कुर्बानी मांगी थी और इब्राहिम के इस जज़्बे को देखकर खुदा ने उनके बेटे को एक जानवर का रूप दे दिया जिसके बाद से बकरीद मनाया जाती है. इस पर खुदा ने सभी को यही सन्देश दिया है कि वो अपनी अजीज़ चीज़ को कुर्बान करें. इसी मौके पर हम ईद से जुडी खास बातें बताने जा रहे हैं जो आपको पता होनी चाहिए.

* बकरीद के मौके पर बकरे की कुर्बानी देना एक प्रतीक है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि इस पर बकरे की कुर्बानी देनी ही होती है. 

* बकरीद में ऐसे किसी भी जानवर की कुर्बानी नहीं दी जाती जिसमें कोई भी शारीरिक बीमारी हो या फिर किसी ही तरह की कोई परेशानी हो. यहां तक की छोटे पशु की भी बलि नहीं दी जाती.

* कुरान में ये भी कहा है कि खुदा के पास देने का जज़्बा ही पहुँचता है ना कि कुछ और.

* कुर्बानी ईद की नमाज के बाद की जाती है.

* आपको बता दें, कुर्बानी के तीन हिस्से होते हैं जिसमें एक खुद के लिए, दूसरा गरीबों के लिए और तीसरा रिश्तेदारों के लिए होता है.

* अगर आप कुर्बानी दे रहे हैं तो आप पर किसी भी तरह का कोई क़र्ज़ नहीं होना चाहिए और साथ ही धन उपलब्ध होना चाहिए.

* कुरान में कहा गया है कि अगर कोई भी अपनी कमाई का ढ़ाई प्रतिशत दान देता है इसके बाद सामाजिक कार्यों में अपना धन कुर्बान करता है तो उसे भी कुर्बानी में गिना जाता है.

* कुर्बानी में बकरे को कुर्बान ज़रूरी नहीं है बल्कि आपमें अपनी खास चीज़ को कुर्बान करने का कितना जज़्बा है अल्लाह को ये पसंद होता है.

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