Editor Desk: तकलीफों से लड़ती 'आशा' की ज़िंदगी
Editor Desk: तकलीफों से लड़ती 'आशा' की ज़िंदगी
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"ज़िंदगी की किताब में, तकलीफों के सिवा कुछ भी न था 
जो देखा पलट कर तो पाया, सच में कुछ भी न था.."

किसी की ज़िंदगी खुशियों से सजी होती है, किसी की ज़िंदगी पिले पन्नो वाली एक किताब होती है, जिसके हर पन्ने पर तकलीफों, संघर्षों, मुश्किलों, चुनौतियों के सिवा कुछ नहीं होता. जिन लोगों की ज़िंदगी पिले पन्नो वाली किताब होती है, इतिहास में कहानियां भी उन्हीं के बारे में लिखी जाती है, लेकिन कुछ कहानियां ऐसी होती है जिसे लिखते वक़्त हाथ साथ नहीं देते, आँखों में अजीब सी मायूसी छा जाती है, शब्द कुछ लिखे जाने से पहले ही मर जाते है, ऐसी ही आशा से भरी एक कहानी है आशा की, जो पूरी ज़िंदगी, ज़िंदगी से बस लड़ती रही....

पढ़िए आशा की कहानी: 

ज़िंदगी में बहुत कुछ खोया है, कभी-कभी सोचने पर लगता है जैसे ज़िंदगी में कुछ हासिल ही नहीं हुआ. मेरे पति की मौत भयानक बाढ़ में, मेरी आँखों के सामने हो गई थी, मैं उनसे 10 फिट दूर खड़ी थी, कुछ समझ आता उससे पहले एक बड़ा पेड़ उनके सर पर गिरा और उन्होंने वहीं दम तोड़ दिया, और वो मर गए. मेरा भी मन किया था मरने का, लेकिन न जाने ऐसा कौन सा साहस था मेरे अंदर जो मुझे हर बार मरने से रोक रहा था. शायद मेरे पति का प्यार ही होगा, जो 12 साल बाद मेरी कोख में था. मुझे समझ नहीं आ रहा था मैं क्या करू? उस रात बारिश में सब कुछ बह गया, न जाने कौन सी रात थी, जो घर के चार बर्तनों के साथ मेरे पति को भी बहाकर ले गई. 

सब कुछ छोड़कर शहर आ गई, पेट में बच्चा था, इसलिए कुछ कम धंधा तो करना था, बाप का साया पहले ही सर से उठ चूका है. मैंने और मेरे पति ने 12 साल इंतजार किया है इस बच्चे के लिए. हर रात ऐसा लगता है जैसे ज़िंदगी बोझ सी हो गई है लेकिन न जाने क्यों, इन अंधेरों में, मैं अब भी ज़िंदा हूँ. एक समय बाद कुछ ख़ुशी नसीब हुई, कोख में पल रहा मेरा बेटा अब आँखों के सामने था. 

कुछ समय यूँही चलता रहा, लेकिन बच्चे की ख़राब तबियत हमेशा दुखी करती थी, दाई को दिखाया, दाई का जवाब भी कुछ ऐसा था जैसे वो बोल रही हो कि बच्चे की मौत की भी तैयारी कर लो, कुछ सुकून मिला था ज़िंदगी से वो भी छीन गया. अब ज़िंदगी में कुछ कारण नहीं बचा था जीने के लिए, लेकिन क्या करे मरने के लिए भी पैसे लगते है. इससे अच्छा कुछ कारण ही ढूंढ लो, 30 साल बीत गए खुद के बच्चे और पति से बिछड़े हुए.  अपना पेट काटकर जैसे-तैसे कुछ पैसे कमाती थी, हर रोज थोड़ा खुद खाती थोड़ा किसी अनाथ बच्चे को खिलाती. आज ज़िंदगी ने फिर से अपना रुख बदल लिया है. टीबी और दिल की बीमारी से पीड़ित हूँ, जिन बच्चों को खाना खिलाया था वो भी अब बड़े हो गए है, मेरा बहुत ख्याल रखते है, एक बच्चा खोया था 30 साल पहले. आज मेरे पास सैकड़ों बच्चे है. ज़िंदगी क्या है आज तक समझ नहीं आई फिर भी जीती जा रही हूँ....

(GMB Akash की फेसबुक वाल से ली गई कहानी)

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