आखिरी सांसे लेता लोकतंत्र....
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सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस चेलमेश्वर जो लड़ाई लड़ रहे है वो आमजन की लड़ाई है कोई तानाशाह हमारे मौलिक अधिकारों का हनन न कर सके इसके लिए वो लड़ रहे हैं.जस्टिस चेलमेश्वर का संघर्ष किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ न होकर उच्चतम न्यायालय की प्रतिष्ठा को बचाने का संघर्ष है. यह लोकतंत्र में स्वतंत्र न्यायपालिका की गारंटी सुरक्षित करने का संघर्ष है.

"हमें नहीं भूलना चाहिए कि न्यायपालिका और सरकार के बीच किसी तरह की सांठगांठ लोकतंत्र की हत्या का सूचक है. हमें यह कहना चाहिए कि हम दोनों ही एक दूसरे के प्रहरी है, ना कि एक दूसरे के प्रशंसक" यह जस्टिस चेलमेश्वर के शब्द है जो उन्होंने चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा को भेजी अपनी चिठ्ठी में कहे है. इस चिट्ठी का मुख्य विषय यह है कि हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति में सरकार का हस्तक्षेप कितना उचित है?

न्यायिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठाते हुए वह आगाह कर रहे हैं कि, ‘‘ हम सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर कार्यपालिका के बढ़ते अतिक्रमण के सामने अपनी निष्पक्षता और अपनी संस्थागत ईमानदारी खोने का आरोप लग रहा है' वह इस चिट्ठी में कहते हैं कि "कार्यपालिका हमेशा अधीर होती है और कर सकने में सक्षम होने पर भी न्यायपालिका की अवज्ञा नहीं करती है. लेकिन इस तरह की कोशिशें की जा रही हैं कि चीफ़ जस्टिस के साथ वैसा ही व्यवहार हो जैसा सचिवालय के विभाग प्रमुख के साथ किया जाता है." यह बेहद गंभीर आरोप है.

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