कहते हैं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है और इस दिन ही बैकुंठाधिपति भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है. आप सभी को बता दें कि इस बार बैकुंठ चतुर्दशी 22 नवंबर को यानी आज मनाई जा रही है और सभी इस त्यौहार को धूम धाम से मना रहे हैं. ऐसे में इस त्यौहार को मनाने के पीछे कई प्रकार की कथा प्रचलित है तो आइए जानते हैं आज इस त्यौहार को मनाने के पीछे की देवऋषि नारद से जुड़ी है यह कथा.
देवऋषि नारद से जुड़ी कथा - सतयुग में नारदजी देवताओं और मनुष्यों दोनों के ही बीच माध्यम का कार्य करते थे. वह चराचर जगत अर्थात पृथ्वी पर आकर मनुष्यों और सभी प्राणियों का हाल लेते और कैलाश, बैकुंठ लोक और ब्रह्मलोक जाकर देवऋषि नारद से जुड़ी चराचर जगत के निवासियों की मुक्ति और प्रसन्नता से जुड़े सवालों का हल प्राप्त करते. फिर अलग-अलग माध्यमों से वह संदेश मनुष्यों तक भी पहुंचाते थे.
इसी क्रम में एक बार नारदजी बैकुंठ लोक में भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे प्राणियों की मुक्ति का सरल उपाय पूछा. तब भगवान विष्णु नारदजी से कहते हैं, जो भी प्राणि मन-वचन और कर्म से पवित्र रहते हुए, बैकुंठ एकादशी पर पवित्र नदियों के जल में स्नान कर भगवान शिव के साथ मेरी पूजा करता है, वह मेरा प्रिय भक्त होता है और उसे मृत्यु के बाद बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है.