टेराकोटा मे कलात्मक कैरियर
टेराकोटा मे कलात्मक कैरियर
Share:

पुरानी सभ्यता के प्रतीक टेराकोटा में आज मॉडर्न जमाने का रंग चढ़ चुका है। कलात्मकता में रुचि रखने वाले युवाओं के लिए यह एक बेहतरीन कॅरियर हो सकता है। विद्यार्थी इस क्षेत्र में अपना खुद का व्यवसाय भी कर सकते हैं। आज के दौर में टेराकोटा से बनी चीजों की मांग काफी बढ़ी है। हजारों साल पुरानी यह कला आज भी जीवित है। अब टेराकोटा से बनी कलाकृतियां बाकायदा डेकोरेशन पीस के तौर पर अपनी पहचान बना रही है। टेराकोटा के बड़े लावर पॉट और सजावटी सामानों को इतना ज्यादा पसंद किया जाने लगा है कि अब इनका प्रयोग बड़ेबड़े होटलों, पार्क, गेस्ट हाउसों में होने के साथ ही घर की साजवट में भी किया जाने लगा है।

टेराकोटा से बने तबले, स्टूल और गुलदस्ते तो हर घर में रखे जाने लगे हैं। राजस्थान के अलवर में टेराकोटा के फ्रीज का भी निर्माण होने लगा है। दीवार पैनल की मांग भी पूरे भारत में जबर्दस्त है। अर्दी टच होने के साथ ही एथनिक लुक की वजह से यह इंटीरियर डिजाइनिंग में अहम स्थान पा चुका है। टेराकोटा के डेकोरेशन पीस की कलात्मक सुंदरता के दीवाने पुरानी संस्कृतियों में थे, पर आज देश के विभिन्न राज्यों में अपनी पहचान बना चुके टेराकोटा पॉट्स अब विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ रहे हैं। लाल रंग की मिट्टी से बनी ये कलात्मक चीजें सबको अपनी ओर आकर्षित करती हैं। घर के दरवाजे पर हैंगिंग घंटियां लगायी जाती हैं, टेराकोटा के भगवान, विभिन्न मूर्तियां, फूलों के गमले, तबले, कटोरे, फुवारे, कलात्मक स्टैंड्स, हाथी, ऊंट, कछुआ, मोर, ढपली, डमरू वगैरह आज कल घर की सजावट में अहम भूमिका निभाते हैं।
 

कैसे लेते हैं स्वरूप: टेराकोटा पीस के निर्माण के लिए लाल व काली मिट्टी का उपयोग किया जाता है। इसमें खुदाई में लाल मिट्टी के बाद निकलने वाली काली मिट्टी का भी इस्तेमाल किया जाता है। यह लाल मिट्टी इतनी चिकनी व पक्की होती है कि इससे किसी भी प्रकार के आयटम को आसानी से बनाया जा सकता है। पॉट्स बनाने में मिट्टी के साथ लकड़ी व अन्य सामग्री का भी उपयोग किया जाता है। जिससे मिट्टी को आधार मिलता है और आकर्षक चीजें तैयार हो जाती हैं। 
 

विदेशों में भी है भारी मांग: कुंभकारों की ओर से मिट्टी से बनाये जाने वाले पीसेज की विदेशों में लगातार मांग बढ़ती जा रही है। हाथों से बने बेहतरीन डिजाइन वाले ये डेकोरेटिव आयटस घरों में सजावट के उपयोग में काम आ रहे हैं। इन कलाकारों के हुनर की विदेशी सैलानी सराहना भी करते हैं। देश के विभिन्न शहरों में भी इसकी दुकानें खुलने लगी हैं। 
 

सिखाने वालों की संख्या में भी इजाफा: राजीव गांधी परियोजना के अलावा नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूलर डेवलपमेंट (नाबार्ड), इससे जुड़े लोगों को प्रशिक्षण देता है। कई संस्थान टेराकोटा डेकोरेटिव आयटस बनाने की प्रोफेशनल ट्रेनिंग दे रहे हैं। पॉटरी मैन्युफैक्चरिंग भी कला है और इसे हस्तकला के अंतर्गत रखा गया है। विभिन्न संस्थानों में इसकी ट्रेनिंग की अवधि अलग-अलग है। छह माह में जहां सर्टिफि केट कोर्स कराया जाता है, वहीं एक साल में डिप्लोमा प्रदान किया जात है। हथकरघा और वस्त्र मंत्रालय के सहयोग से कई राज्यों में कॉमन फैसिलिटी सेंटर भी खोला गया है। 
 

कहां होती है इसकी पढ़ाई: डॉ. जेसी कुमारप्पा इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल टेनोलॉजी एंड डेवलपमेंट टी कालूपट्टी मदुरै तमिलनाडु। सीबी कोरा इंस्टीट्यूट ऑफ विलेज इंडस्ट्रीज। खादी एवं ग्राम उद्योग कमीशन, शिमोपोली रोड मुंबई। मल्टी डिस्ह्रिश्वलनरी ट्रेनिंग सेंटर, खादी एवं ग्राम उद्योग समिति, दूरवानी नगर बेंगलुरु। खादी और ग्राम उद्योग समिति गांधी आश्रम राजघाट नयी दिल्ली आदि शामिल हैं।

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -