अन्नकूट या गोर्वधन पर्व, भगवान श्रीकृष्ण को करते हैं सम्बोधित
अन्नकूट या गोर्वधन पर्व, भगवान श्रीकृष्ण को करते हैं सम्बोधित
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हिन्दू धर्म में उत्साह, चकाचौंध और रोशनी भरा त्यौहार दिवाली बहुत ही जल्द हर घर में दस्तक देने वाली है। दिवाली के आते ही हर घर में उत्साह का माहौल देखने को मिलता है। हर तरफ रोशनी ही रोशनी, बाजारों में अजीब सी हलचल, इतना ही नहीं हिन्दू धर्म में दिवाली आने के बाद से समस्त मूहर्त के बंद ताले खुल जाते हैं और हिन्दू परंपराओं की फिर से एक नई शुरूआत होती है। हिन्दू धर्म में दिवाली एक ऐसा त्यौहार है जिसके आगे पीछे कई त्यौहार साथ आते हैं। ऐसा ही एक त्यौहार है अन्नकूट या गोर्वधन, हिन्दू धर्म में इस त्यौहार की भी काफी मान्यता होती है। सामान्य भाषा में इसे अन्नकूट या गोवर्धन के नाम से जाना जाता है। यह पर्व दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है। इस त्यौहार पर तरह-तरह के कई पकवान व भोजन सामग्री तैयार किए जाते हैं और इन पकवानों को भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है। 

गोवर्धन या अन्नकूट का पर्व भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है। यह पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से यह पर्व मनाया जा रहा है। इस पर्व पर गोर्वधन यानि की गाय की पूजा की जाती है। हिन्दू मान्यता के अनुसार गाय में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है। जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सुख समृध्दि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती है। हिन्दू धर्म में कोई भी परंपरा या रीति-रिवाज अचानक ही शुरू नहीं हुई बल्कि इनके पीछे सालों-साल पहले घटना, घटित होती है जिसकी वजह से आज तक यह परंपरा चली आ रही है ऐसी ही एक पौराणिक कथा है जिसकी वजह से आज गोवर्धन या अन्नकूट जैसे पर्व मनाये जाते हैं।

द्वापर युग से शुरूआत हुई इस परंपरा की 
गोवर्धन पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। उससे पूर्व ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी, एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को तर्क दिया कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता, वर्षा करना उनका कार्य है और वह सिर्फ अपना कार्य करते हैं जबकि गोवर्धन पर्वत गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए इंद्र की नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा की जानी चाहिए। इसके बाद इंद्र ने गुस्से में आकर ब्रजवासियों को भारी वर्षा से डराने का प्रयास किया, मगर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों को उनके कोप से बचा लिया। सभी ब्रजवासी पूरे सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण में रहे थे। इसके बाद से ही इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का विधान शुरु हो गया और यह परंपरा आज भी जारी है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार गोवर्धन या अन्नकूट पर्व के समय कुछ बातें ऐसी भी है जिसका ध्यान रखना जरूरी होता है। अगर इन बातो का ध्यान नहीं रखा जाता है तो साल भर तक दुर्भाग्य साथ नहीं छोड़ता। ऐसा माना जाता है कि अगर गोवर्धन पूजा के दिन कोई दुखी है तो वह वर्ष भर दुखी रहेगा। इसलिए मनुष्य को इस दिन प्रसन्न होकर इस उत्सव को सम्पूर्ण भाव से मनाना चाहिए। इस दिन स्नान से पूर्व तेलाभ्यंग अवश्य करना चहिए, इससे आयु, आरोग्य की प्राप्ति होती है और दु:ख दरिद्रता का नाश होता है। इस दिन जो शुद्ध भाव से भगवान के चरणों में सादर समर्पित, संतुष्ट, प्रसन्न रहता है वह पूरे साल भर सुखी और समृद्ध रहता है। 

गोवर्धन पूजा की तिथि और मुहूर्त
इस बार गोवर्धन पूजा 20 अक्टूबर, 2017 यानी शुक्रवार के दिन की जाएगी। गोवर्धन पूजा के मुहूर्त की बात करें तो इस बार प्रातःकाल मुहूर्त 6:37 से 8:55 मिनट तक और सायंकाल मुहूर्त 3:50 से 6:08 मिनट तक रहेगा।

 

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