शादी के बाद संतान का सुख मिलेगा अथवा नहीं ऐसे करें पता
शादी के बाद संतान का सुख मिलेगा अथवा नहीं ऐसे करें पता
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दाम्पत्य जीवन तभी पूरा माना गया है, जब इस जीवन में संतान सुख मिले। दुनिया में हर इंसान अपना वंश आगे बढ़ाना चाहता है। इसके लिए वह यही चाहता है कि उसकी शादी के बाद उसे एक निश्चित समय पर पुत्र की प्राप्ति हो और इसके लिए वह भगवान से भी प्रार्थना करता है। लेकिन आमतौर पर ऐसे बहुत से लोग भी हैं, जो निःसंतान है। जो कभी भी मां बाप नहीं बन सकते है। लेकिन कभी आपने ऐसा सोचा है कि वास्तव में ऐसा क्यों होता है ज्योतिषशास्त्र की मानें तो निःसंतान होने का कारण आपकी कुंडली से है। जी हां आपकी कुंडली से ही आपकी संतान निर्धारित होती है। तो चलिए जानते हैं आपकी कुंडली में पुत्र होने के योग है या नहीं-

दशमें शीतगुद्र्युने भृगुभे पापिन: सुखे। तस्य सन्तति विच्छेदों भविष्यति न संशय।।
अर्थात : यदि कुंडली में लग्न से दसवें घर में चंद्रमा, सातवें शुक्र और पाप गृह चौथे घर में बैठे हों तो उसे संतान विच्छेद योग होता है। यानि संतान सुख से वंचित रहना पड़ता है। 
 
उपाय- गोपाल सहस्त्र नाम का अनुष्ठान तथा संतान गोपाल स्तवन का अनुष्ठान दम्पत्ति विधि विधान से करें, तथा गृहों का दान पुण्य करें तो काम में सफलता का योग बनता है।

षष्ठाष्टमस्थो लग्नेश: पापयुक्त: सुताधिप:। दृष्टों वा शत्रुनीचस्थै: पुत्र हानि वदेद्रुध:।।
अर्थात :
यदि लग्नेश छठे या आठवें में बैठा हो, पंचमेश पापगृह युक्त हो, या शत्रु दृश्य हो तो मतृवत्सा योग होता है। कुलमाता की साधना का उपाय सार्थक होता है तथा राम रक्षा कवच को धारण किया जाना चाहिए।

लग्न सप्तम धर्मा, त्याराशिगा: पाप रवेचरा:। सपत्नराशिवर्गस्था वंश विच्छेद कारिया :।
अर्थात :
यदि पाप ग्रह 1, 7, 4 व 12वें भाव में बैठे हों और वे शत्रु क्षेत्र के हों तो वंश विच्छेद योग बनता है।

उपाय : हरिवंश पुराण का अनुष्ठान कराएं।

पुत्र प्राप्ति का समय जानना : लग्नेश, पंचमेश के राशि अंकों को जोडऩे से जो राशि अंक बने उस पर जब गुरु गृह आए तो पुत्रोत्पत्ति का समय बनता है।

दत्तकपुत्र योग: पुत्र स्थाने बुध क्षेत्रे मंद होतेयषा यदि। मंदिमान्दपुते दृष्टे तदा दत्ताद्य: सुता:।।
अर्थात :
पंचम भाव बुध या शनि की राशि का हो (3, 6, 10, 11) बुध शनि से युक्त या दृष्ट हो तो दत्तक पुत्र योग बनता है।

उपाय : पुत्र प्राप्ति, धर्म करने से होती है। बुध, शुक्र और चंद्रमा प्रति बंधक हों तो शिवजी का अभिषेक कराना चाहिए। बृहस्पति प्रतिबंधक हो तो मंत्र-तंत्र औषधि प्रयोग से कष्ट निवारण जानना चाहिए। शनि-राहू-केतु बाधक होने पर कुल देवता तथा संतान गोपाल की आराधना करनी चाहिए।

 

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