तमिलनाडु से 75 बांग्लादेशी घुसपैठिए गिरफ्तार हुए थे, पर अब वो लापता हो गए..! विवादों में स्टालिन सरकार

तमिलनाडु से 75 बांग्लादेशी घुसपैठिए गिरफ्तार हुए थे, पर अब वो लापता हो गए..! विवादों में स्टालिन सरकार
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चेन्नई: तमिलनाडु में अवैध रूप से रह रहे 75 बांग्लादेशी नागरिकों के लापता होने की खबर ने राज्य की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इन अप्रवासियों को पिछले साल गिरफ्तार किया गया था और कानूनी प्रक्रिया के तहत त्रिची के विशेष शिविर में रखा गया था, लेकिन जमानत मिलने के बाद से वे कहां गए, इसका अब तक कोई पता नहीं चल पाया है।  

इस घटना को लेकर तमिलनाडु भाजपा प्रमुख के. अन्नामलाई ने राज्य सरकार की तीखी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि सरकार ऐसे संवेदनशील मामलों को सुलझाने में पूरी तरह विफल रही है और यह घटना दिखाती है कि राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने को लेकर प्रशासन कितना लापरवाह है। इस मुद्दे पर चिंता बढ़ाने वाली एक और बात यह है कि तमिलनाडु में अवैध प्रवासियों को फर्जी दस्तावेज़ आसानी से उपलब्ध कराए जा रहे हैं। कई मामलों में यह देखा गया है कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी नागरिकों को मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस जैसी जरूरी पहचानें दिलाने में एक संगठित नेटवर्क मदद करता है। यही नहीं, इन्हें राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में काम भी आसानी से मिल जाता है।  

स्थानीय स्तर पर सक्रिय जमात और कुछ बिचौलिए इन प्रवासियों को आवास और सुरक्षा भी प्रदान करते हैं, जिससे वे बिना किसी मुश्किल के लंबे समय तक यहां रह सकें। यह सुव्यवस्थित तंत्र न केवल राज्य की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है, बल्कि देश की सीमा सुरक्षा नीतियों की खामियों को भी उजागर करता है। तमिलनाडु पुलिस अवैध रूप से रह रहे और बिना आवश्यक दस्तावेज़ों के यात्रा कर रहे लोगों को गिरफ्तार करती है, खासकर तब, जब उनके कारण कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने का खतरा हो। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट किया था कि किसी भी आपराधिक मामले में शामिल विदेशी नागरिक बिना कानूनी कार्रवाई का सामना किए भारत नहीं छोड़ सकते।  

त्रिची में पिछले साल गिरफ्तार किए गए इन 75 बांग्लादेशी नागरिकों को भी एक विशेष शिविर में रखा गया था। कानूनी प्रक्रिया के अनुसार, जमानत मिलने के बावजूद उन्हें निर्वासन तक इसी शिविर में रहना था, लेकिन अब उनका कोई अता-पता नहीं है। भाजपा नेता के. अन्नामलाई ने इस मामले को लेकर राज्य सरकार की कड़ी आलोचना की और डीएमके को "ड्रामा मॉडल सरकार" करार दिया। उन्होंने कहा कि सरकार अवैध प्रवासियों की समस्या सुलझाने के बजाय विपक्ष की आवाज़ दबाने में अधिक व्यस्त है।  

 

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य की पुलिस सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वालों को डराने और मामूली विरोध करने वालों पर कार्रवाई करने में व्यस्त है, जबकि अपराधी और अवैध अप्रवासी खुलेआम घूम रहे हैं। सोशल मीडिया एक्टिविस्ट सरवणप्रसाद बालासुब्रमण्यम ने इस मामले पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर अवैध रूप से भारत में रह रहे लोगों को इतनी आसानी से जमानत क्यों दे दी गई। उन्होंने कहा कि अन्य देशों में अवैध रूप से रहने वाले विदेशी नागरिकों को इतनी सरलता से जमानत नहीं मिलती, लेकिन तमिलनाडु में ऐसा क्यों हुआ?  

उन्होंने इस मामले की तुलना श्रीलंका की समुद्री सीमा में घुसने वाले तमिल मछुआरों से की। उन्होंने कहा कि जब भारत सरकार की ओर से राजनयिक अनुरोध किए जाने के बावजूद श्रीलंका की अदालतें भारतीय मछुआरों को जमानत नहीं देतीं, तो फिर तमिलनाडु की अदालतों ने बांग्लादेशी नागरिकों को इतनी आसानी से रिहा क्यों कर दिया?  

गंभीर सुरक्षा चिंताओं के बीच, 24 जनवरी, 2025 को कोयंबटूर में आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) ने खुफिया जानकारी के आधार पर तिरुपुर के कई स्थानों पर छापेमारी की। इस अभियान में तिरुपुर के 15-वेलमपलायम क्षेत्र से 20, तिरुपुर दक्षिण से छह और नल्लूर से 10 लोगों को हिरासत में लिया गया। प्रारंभिक जांच में पता चला कि ये सभी संदिग्ध निटवेअर और निर्माण उद्योगों में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर रहे थे। इस छापेमारी के अलावा, पुलिस ने इस सप्ताह की शुरुआत में नल्लूर इलाके में 12 और बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया। अधिकारियों ने इन सभी की पहचान के लिए आधार कार्ड सहित अन्य दस्तावेजों की जांच शुरू कर दी है।  

पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, जनवरी 2025 में तिरुपुर जिले में वैध दस्तावेज़ों के बिना रह रहे 98 बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया था। कोयंबटूर और तिरुपुर दोनों जगहों पर इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है।  अवैध प्रवासी कपड़ा मिलों, निर्माण कार्यों और अन्य उद्योगों में छोटे-मोटे काम पाकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इनमें से कई लोग राजमिस्त्री, बढ़ई, प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन और मैकेनिक के सहायक के रूप में काम कर रहे हैं। वे समूहों में अस्थायी या स्थायी आश्रयों में रहते हैं, जिससे उनकी पहचान करना और भी मुश्किल हो जाता है।  

राज्य सरकार और प्रशासन के लिए यह मामला अब एक बड़ी चुनौती बन चुका है। 75 लापता बांग्लादेशी नागरिकों का पता कैसे चलेगा और क्या सरकार अवैध प्रवासियों पर कोई ठोस कार्रवाई करेगी? यह देखने वाली बात होगी। भाजपा और डीएमके के बीच इस मुद्दे पर राजनीतिक टकराव भी बढ़ता जा रहा है। आने वाले दिनों में इस मामले को लेकर और भी बयानबाज़ी और राजनीतिक खींचतान होने की संभावना है। राज्य सरकार को अब यह तय करना होगा कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से लेकर कार्रवाई करेगी या इसे महज एक और राजनीतिक विवाद बनाकर छोड़ दिया जाएगा।

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