15 वर्षों के बाद कांग्रेस ने इस प्रदेश में भी गंवाई सत्ता, भाजपा में चले गए पार्टी के 77% नेता
15 वर्षों के बाद कांग्रेस ने इस प्रदेश में भी गंवाई सत्ता, भाजपा में चले गए पार्टी के 77% नेता
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नई दिल्ली: दीव नगर परिषद में विगत 15 वर्षों से राज कर रही कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा है। कांग्रेस के कुल 9 में से 7 पार्षदों ने शनिवार को भाजपा ज्वाइन कर ली है। पार्षदों के साथ ही दर्जनों समर्थकों ने भी भाजपा के साथ जाने का फैसला किया है। ताजा दल बदल के बाद निकाय में कांग्रेस की सीटों की तादाद केवल दो रह गई है। वहीं, भाजपा 10 पार्षदों के साथ बहुमत में आ गई है।

दीव के घोघला में आयोजित की गई जनसभा में सात परिषदों ने औपचारिक रूप से भाजपा का दामन थाम लिया। इन पार्षदों में हरीश कपाड़िया, दिनेश कपाड़िया, रविंद्र सोलंकी, रंजन राजू वनकर, भाग्यवंती सोलंकी, भावनाग दुधमल और निकिता शाह शामिल है। दादरा और नगर हवेली और दमन दीव के प्रभारी और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विजय राहटकर ने पार्टी की सदस्यता लेने वाले पार्षदों का स्वागत किया। खास बात है कि 6 माह पूर्व ही दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव के प्रशासन ने कांग्रेस शासित दीव नगर परिषद के अध्यक्ष हरीश सोलंकी को सस्पेंड कर दिया था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, राहटकर का कहना है कि पार्षदों ने पीएम नरेंद्र मोदी की भाजपा की 'विकास की राजनीति' को समर्थन देने के लिए भाजपा ज्वाइन की है। सात पार्षदों के पार्टी छोड़ने के कारण कांग्रेस ने दीव नगर परिषद में बहुमत गंवा दिया है।

बता दें कि वर्ष 2007 में पार्टी ने यहां चुनाव जीता और 2012, 2017 कामयाबी दोहराई। 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने 13 में से 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि, भाजपा के खाते में सिर्फ 3 सीटें ही आ सकी थी। मौजूदा स्थित में हितेश सोलंकी और उनके भाई जीतेंद्र सोलंकी ही कांग्रेस पार्षद बचे हैं। उपाध्यक्ष रहे मनसुख पटेल का गत वर्ष नवंबर में देहांत हो गया था। सोलंकी ने कांग्रेस पार्षदों के दल बदलने पर पटेल को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि, '2017 से जब से उन्हें प्रशासक नियुक्त किया गया है, दीव की सियासत बदल गई है। पार्षदों ने मुझे बताया है कि उन्हें पार्टी बदलने या अंजाम भुगतने के लिए दबाव डाला जा रहा है। उन्होंने कहा है कि उनके पास प्रशासक और भाजपा के खिलाफ लड़ने की शक्ति नहीं है, जिस प्रकार से मैं लड़ रहा हूं। ऐसी स्थित में उनके पास भाजपा में जाने के अतिरिक्त शायद कोई रास्ता नहीं था।' खास बात है कि सोलंकी को अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद केंद्र शासित प्रदेश में नागरिक निकाय के लिए प्रशासक नियुक्त किया गया था। साथ ही अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के लिए भी अब तक चुनाव नहीं हुए हैं।

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