वकीलों की कमी से निचली अदालतों में 63 लाख केस अब भी पेंडिंग

तारीख पर तारीख बढ़ती ही चली जा रही है. लोग आते हैं और हताश होकर वापस भी चल रहे है, लेकिन आज भी जब देश में दो लोगों के मध्य झगड़ा होता है या विवाद होता है तो वह एक दूसरे से बोल रहे है- I will see you in court (मैं तुम्हे कोर्ट में देखूंगा). क्योंकि आज भी लोग न्यायपालिका पर विश्वास करते हैं. लोगों को लगता है कि जब कोई उनकी बात नहीं सुनेगा तो कोर्ट सुनेगा. लेकिन देश में न्यायपालिका पर बहुत बोझ है, जिससे हर व्यक्ति को वक्त पर न्याय मिल ही नहीं पाता. नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (NJDG) की रिपोर्ट से सामने आया है कि 20 जनवरी 2023 तक देश की निचली अदालतों में चार करोड़ से अधिक केस पेंडिंग हैं.

NJDG ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पेंडिंग चार करोड़ मामलों में से तकरीबन 63 लाख केस  इसलिए पेंडिंग हैं, क्योंकि उनकी सुनवाई के लिए कोई वकील उपलब्ध नहीं है. इन 63 लाख केसों में से 78 फीसदी क्रिमिनल केस और बाकी सिविल केस हैं. रिपोर्ट के मुताबिक देश का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश इस केस में टॉप है, जहां सबसे अधिक केस पेंडिंग हैं. जिसके उपरांत बिहार, महाराष्ट्र और दिल्ली का नंबर आता है.

देश में एक औसत मामले को पूरा होने में लगते हैं 4 साल: नागरिकों को कानूनी अधिकारों को समझने में सहायता करने वाली एक पहल न्याय की टीम लीडर अनीशा गोपी ने का बोलना है कि, ”अक्सर वकीलों पर बहुत ज्यादा बोझ होता है. जिस तरह से हमारी अदालतों में रजिस्ट्री काम करती है, मुकदमों की सूची आखिरी वक्त में आती है और वकीलों को हमेशा सुनवाई से चूकने के लिए मजबूर होना पड़ता है. दूसरा कारण यह है कि भारत में एक औसत केस को पूरा होने में चार साल लगते हैं. जब मुकदमेबाजी प्रत्याशित से अधिक समय तक जारी रहती है तो पीड़ित व्यक्ति भारी कानूनी शुल्क का भुगतान करने में असमर्थ होता है और केस रुक जाता है.”

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