महात्मा गाँधी की वो 5 गलतियाँ जिनका खामियाज़ा आज भी भुगत रहा है भारत
महात्मा गाँधी की वो 5 गलतियाँ जिनका खामियाज़ा आज भी भुगत रहा है भारत
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आज देशभर में महात्मा गांधी जयंती मनाई जा रही है। आप सभी जानते ही होंगे कि महात्मा गांधी ने ना सिर्फ देश को स्वतंत्रता दिलाने में सहायता की थी बल्कि पूरी दुनिया को अहिंसा की राह पर चलना सिखाया है। महात्मा गांधी का जन्म आज ही के दिन मतलब 2 अक्टूबर को हुआ था। वही आज इस मौके पर हम आपको बताएंगे महात्मा गांधी को गोलियो से भूनने वाले नाथू राम गोडसे के बारे में। इस मौके पर हम आपको बताएंगे महात्मा गांधी से जुड़ी कुछ अनसुनी बाते।।। वैसे तो हम बचपन से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में पढ़ते एवं सुनते आ रहे है। सभी लोग चाहते है कि उनकी भांति ऊंचाइयों को छुए और सबके लिए आदर्श बनें। मगर बेहद कम लोग जाते है कि गांधीजी से भी कभी गलतियां हुई थी। वही महात्मा गांधी की वो गलितयों, जिनका खामियाज़ा देश आज भी भुगत रहा है।
 
1- गांधीजी की हठधर्मिता:-
गांधीजी हठी थे, उनकी ‘माय वे ऑर हाईवे’ वाले सिद्धांत ने बहुत नुकसान पहुँचाया। गांधीजी ने बहुत बड़े और प्रभावी आंदोलन किये पर आदर्शो एवं सिद्धांतों के नाम पर उन्हें स्वयं ही समाप्त कर दिए। मोटे तौर पर गांधी जी की नीति ये थी- “मुझे फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने बड़े नेता हैं अथवा आपने कितने ही अच्छे काम किये हैं जबतक आप मेरे विचारों से सहमत नहीं, आपको मेरा समर्थन नहीं प्राप्त होगा।” उदाहरण के रूप में 1927 में गांधीजी ने ऐलान किया कि मेरे बाद सी। राजगोपालाचारी को पार्टी की कमान सौंप दी जाये। लेकिन 1942 में क्रिप्स कमीशन पर वैचारिक मतभेदों के पश्चात् गांधीजी ने उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया तथा ये बोला कि राजगोपालाचारी नहीं बल्कि नेहरू मेरे उत्तराधिकारी होंगे। (तथा केवल गांधी के उत्तराधिकारी होने का अर्थ प्रधानमंत्री? प्रधानमंत्री का पद क्या गांधीजी की जागीर थी?) केवल अपने आदर्शो को थोपने के कारण उन्होंने नेताजी को पार्टी छोड़ने पर विवश कर दिया क्यूंकि गांधी जी एवं उनके समर्थक, जैसे जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस के विरोध पर हद से अधिक उतारू हो गए थे।  सैद्धांतिक मतभेदों के कारण बहुतो को गाँधी के कोपभाजन का शिकार बनना पड़ा। यह गांधीजी की एक अहिंसक तानाशाही छवि को दिखाता है। सायंस और टेक्नोलॉजी को लेकर भी गांधीजी के विचार भी बहुत अलग थे। विदेश में पढाई के बाद भी उन्हें ये शैतानी लगता था। उन्होंने अपनी बीवी कस्तूरबा गांधी को मरने दिया जबकि एक इंजेक्शन लगा देने भर से उनकी जान बच सकती थी। गांधीजी के आदर्शो के अनुसार ये हिंसक था। 

2- भगत सिंह की फांसी:- गांधीजी चाहते तो ये फांसी रोक सकते थे पर कई व्यक्तियों का यह कहना है कि गांधीजी ने भगत सिंह के मामले पर कभी गंभीरता बताई ही नहीं। हालांकि भारत के वायसरॉय को लिखी चिट्ठी में गांधी जी ने लिखा था “Execution is an irretrievable act। If you think there is the slightest chance of error of judgment, I would urge you to suspend for further review an act that is beyond recall” (मृत्युदण्ड एक असाध्य क्रिया है, अगर इसमें कही से भी कोई भी गुंजाईश है तो मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ की कृपया इस निर्णय को पुनः समीक्षा तक निलंबित किया जाये) वही अगर गांधीजी चाहते तो फांसी के विरुद्ध आंदोलन कर सकते थे या फिर उन व्यक्तियों का साथ दे सकते थे जो भगत सिंह एवं उनके साथियों के फांसी के विरोध में शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे लेकिन उन्होंने केवल चिट्ठी लिखने तथा विनती करने के अतिरिक्त कुछ नहीं किया।

प्रख्यात लेखक A.G Noorani ने अपनी किताब “ट्रायल ऑफ़ भगत सिंह” के चौदहवें अध्याय में लिखते हैं “गांधी की कोशिश आधी अधूरी थी, उन्होंने कभी दिल से कोशिश की ही नहीं। जब जेल में भगत सिंह और उनके साथी भूख हड़ताल पर थे, गांधीजी ने उनसे मिलने या उन्हें देखने तक की जहमत नहीं उठाई। और तो और लार्ड इरविन को लिखी चिट्ठी अपने मैं गांधी जी ने फांसी के फैसले को रद्द करने की जगह उसे केवल कुछ वक़्त तक टालने का आग्रह किया था।”

3- अहिंसा का ढोंग:- 1906 में गांधी जी ने ज़ुलु साम्राज्य के विरुद्ध हुए युद्ध में अंग्रेजो की मदद की। उनका ये कहना था की इस युद्ध में ब्रिटिश को सहयोग देकर वो उनका विश्वास जीत लेंगे। उन्होंने भारतीय सैनिको को ब्रिटिश सेना में भर्ती करने में ईस्ट इंडिया कंपनी को सहयोग दिया। 1920 की बात है जब गांधीजी के ही नेतृत्व में देशव्यापी असहयोग आंदोलन शीर्ष पर था पर चौरा चौरी में कुछ उग्र व्यक्तियों ने एक पुलिस थाने को जला देने से आहृत होकर गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया। बड़ी अजीब बात है न, अंग्रेजो के लिए विश्वयुद्ध में भारतीय जवान मर रहे थे तो कोई अहिंसा नहीं, पर जब देश की स्वतंत्रता के लिए हिंसा की बात आती है तो गांधीजी को अहिंसा याद आजाती है। वास्तविकता तो ये थी की गांधीजी अंग्रेजो की दृष्टि में वफादार बने रहना चाहते थे तथा इसके लिए वो कुछ भी कर सकते थे। देश स्वतंत्र कराने के लिए वो कभी पूर्णतः समर्पित हुए ही नहीं। इतिहास गवाह है की स्वतंत्रता मांगने से नहीं मिलती, छीननी पड़ती है, इसकी कीमत देशभक्तों को अपने खून से चुकानी पड़ती है जो गांधीजी ने नहीं बल्कि उन व्यक्तियों ने चुकाई जिन्हें आज भारत के इतिहास के पन्नो पर पर्याप्त स्थान तक नसीब न हुआ।

4- भारत का विभाजन:- गांधीजी की ये सबसे बड़ी गलती थी जिसे आज पूरा भारत भुगत रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध से 1942 के आंदोलन को यदि वापस न लिया गया होता तो न ही मुस्लिम लीग का निर्माण होता तथा न देश की मांग होती। 1942 में आंदोलन ने ये स्पष्ट कर दिया था कि भारतीय अब और नहीं सहेंगे। इसे भांपते हुए इंग्लिश शासन ने अपना आखिरी दांव खेला, उन्होंने बताया कि विश्व युद्ध में भारत हमारा सहयोग करे तथा हम बदले में उसे स्वतंत्र कर देंगे। गांधी ने, अपनी आदत के मुताबिक घुटने टेक दिए तथा अंग्रेजो को विश्वयुद्ध की समाप्ति तक का समय दिया जबकि स्वतंत्रता हमें उससे पहले ही प्राप्त हो सकती थी। इस बीच मुस्लिम लीग बहुत तेज़ी से बढ़ा तथा उन्होंने अंग्रेजो से संधि की कि हम आपको जवान देंगे आप हमारी अलग राष्ट्र की मांग पर विचार करें। जाते जाते देश को विभाजित करने का सुनहरा अवसर अंग्रेज कैसे छोड़ सकते थे। उस वक़्त कांग्रेस के नेताओं का कहना था विभाजन टाला नहीं जा सकता तथा उन्होंने विभाजन पर मंजूरी दे दी लेकिन अगर गांधीजी अपनी बात पर अड़ जाते तो भी इस विभाजन को रोका जा सकता था। ऐसी ही दिक्कत अमेरिका की स्वतंत्रता के समय अब्राहम लिंकन के सामने थी लेकिन देश के टुकड़े करने कि जगह उन्होंने एक लम्बी और हिंसक जंग लड़ी तब जा कर अमेरिका आज यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका बना। गांधीजी ये बात बार बार भूलते रहे कि स्वतंत्रता की कीमत चुकानी पड़ती है। वह प्रतीक्षा करते रहे कि अंग्रेज उन्हें भारत की स्वतंत्रता थाली में परोस कर देंगे। लेकिन परोसने से पहले ही अंग्रेजो ने इसके टुकड़े टुकड़े कर दिए। गलत वक़्त पर गलत व्यक्तियों के साथ गलत आदर्शों का अनुसरण गांधीजी के साथ साथ हम सबको महंगा पड़ गया।

5- गांधीजी की विवादित सेक्स लाइफ:- जैड एडम्स का दावा है कि उन्होंने गांधी के सैकड़ों ख़तों की छानबीन करने के बाद यह पुस्तक लिखी है। पुस्तक में कहा गया है कि बुढ़ापे के दिनों में बापू कई जवान महिलाओं के साथ निर्वस्त्र होकर नहाते थे, उनसे मालिश करवाते थे। लेखक का यह भी दावा है कि बापू अपनी शिष्यायों के साथ तक सोते थे। हालांकि, पुस्तक में यह भी कहा गया है कि ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिले है, जिनके आधार पर यह कहा जाए कि उन महिलाओं के साथ बापू के यौन संबंध थे। लेकिन बापू द्वारा किए गए ब्रम्हचर्य के प्रयोग और इन प्रयोगों के नाम पर की गई क्रियाओं का उल्लेख उस पुस्तक में आवश्य दर्ज है। ऐडम्स के अनुसार, जब बंगाल के नोआखली में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़के हुए थे, तब गांधी ने अपनी पोती मनु को बुलाया और कहा "यदि तुम मेरे साथ नहीं होती तो मुस्लिम कट्टरपंथी हमारा क़त्ल कर देते। आओ आज से हम दोनों निर्वस्त्र होकर एक दूसरे के साथ सोएं और अपने शुद्ध होने और ब्रह्मचर्य का परीक्षण करें।'

"इन सारी त्रुटियों के बावजूद गाँधीजी का भारत की आजादी में एक महत्वपूर्ण योगदान रहा जिसे हम कतई नज़रअंदाज नही कर सकते।"

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