व्यापमं की भेँट चढ़े अब तक 48, खतरे में शिव
व्यापमं की भेँट चढ़े अब तक 48, खतरे में शिव "राज"
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भोपाल : मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाला मुसीबत का सबब बन गया है। इस मामले में एक ओर गिरफ्तारियों का सिलसिला जारी है तो दूसरी ओर आए दिन इस मामले से जुड़े लोगों की मौत हो रही है। इन परिस्थितियों के कारण शिवराज की मुसीबतें बढ़ती ही जा रही हैं। व्यापमं का जिन्न अब मध्य प्रदेश से निकलकर देश की सियासत की सुर्खियों में छाया हुआ है। इस मामले से जुड़े 48 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं घोटाले की जांच की निगरानी कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने मौतों का आंकड़ा 33 ही माना है। सरकार के मुताबिक इस मामले में 25 लोगों की मौत हुई है जिनमें से 11 लोग प्रकरण दर्ज होने से पहले ही दम तोड़ चुके हैं। मृतकों में मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे शैलेश यादव का भी नाम शामिल है, वह भी व्यापमं घोटाले का आरोपी था।

व्यापमं कांड को शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल की सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है। इससे पहले वर्ष 2005 में डंपर कांड ने जोर पकड़ा था,तब उन पर आरोप लगा था कि उनकी पत्नी साधना सिंह के रीवा स्थित जेपी सीमेंट संयंत्र में चार डंपर लगे हुए हैं। इन डंपरों की मालिक साधना सिंह के पति के तौर पर शिवराज सिंह पर लोकायुक्त में मामला दर्ज किया गया था। तब कांग्रेस ने विधानसभा से लेकर सड़क तक पर हंगामा किया था। बाद में हालांकि चौहान को इस मामले में बरी कर दिया गया था।

शिवराज, उनके परिवार व सरकार से जुड़े लोगों पर व्यापमं घोटाले में भी संलिप्तता के आरोप लगे हैं। कांग्रेस लगातार इस मामले को मुद्दा बनाती रही है। पार्टी मांग कर रही है कि मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए, लेकिन पार्टी की इस मांग को कहीं से भी समर्थन नहीं मिल पाया है। कांग्रेस को न्यायालय से तो निराशा हाथ लगी ही, लेकिन पार्टी के नेता इस मामले की शिकायत लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक भी गए और वहां से भी उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा। कांग्रेस सीधे तौर पर मुख्यमंत्री शिवराज चौहान, उनके परिवार, पत्नी, मुख्यमंत्री आवास से जुड़े अफसरों और मंत्रियों पर इस घोटाले में शामिल होने के आरोप लगा रही है। हर रोज सामने आ रहे तथ्यों ने मुख्यमंत्री की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। यही कारण है कि कभी सरकार के मंत्रियों को तो कभी संगठन से जुड़े लोगों को सामने आकर सफाई देनी पड़ रही है। व्यापमं घोटाले के कवरेज के लिए आए टीवी पत्रकार अक्षय सिंह की झाबुआ में हुई मौत के बाद तो रविवार को मुख्यमंत्री चौहान को स्वयं सफाई देने मीडिया के सामने आना पड़ा।

उन्होंने कहा कि वे ही ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने मामले के सामने आने पर एसटीएफ को जांच सौंपी थी। शिवराज ने कहा कि जहां तक सीबीआई जांच का सवाल है, यह उच्च न्यायालय को तय करना है कि जांच किससे कराई जाए। अभी मामला उच्च न्यायालय में है। कांग्रेस द्वारा लगाए जा रहे आरोपों पर चौहान ने कहा कि कांग्रेस का काम सिर्फ आरोप लगाना है, उसका व्यापमं मसले से कोई सरोकार नहीं है। उन्होंने कहा कि वे (कांग्रेस नेता) झूठ बोलते जाते हैं, उनकी आंखों की किरकिरी शिवराज व राज्य सरकार है। वे भ्रम फैला रहे हैं और आरोप लगाए जा रहे हैं। कुछ मौतें हुई हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण व दुखद है। ज्ञात हो कि राज्य में इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडीकल कॉलेज में दाखिले से लेकर विभिन्न विभाग की भर्तियों की परीक्षा व्यापमं आयोजित करता है। इन दाखिलों और भर्तियों में हुई गड़बड़ी का खुलासा होने के बाद जुलाई 2013 में पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी।

इस मामले में पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा से लेकर व्यापमं के पूर्व नियंत्रक पंकज त्रिवेदी सहित वरिष्ठ अधिकारी व राजनीतिक दलों से जुड़े लोग जेल में हैं। राज्यपाल रामनरेश यादव पर भी सिफारिश करने का प्रकरण दर्ज है। कांग्रेस विधायक अजय सिंह का कहना है कि मुख्यमंत्री चौहान मासूमियत से लगातार झूठ बोलते आ रहे हैं। इस घोटाले में उनके साथ ही सरकार के कई लोग शामिल हैं, इसीलिए वे न्यायालय का हवाला देकर मामले की जांच सीबीआई को नहीं सौंपना चाहते। अगर मामला सीबीआई के पास गया तो कई और जेल में होंगे।

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