नरेंद्र मोदी: सेवा और समर्पण के अतुलनीय 20 साल, देखें एक सामान्य कार्यकर्ता से PM तक का सफर
नरेंद्र मोदी: सेवा और समर्पण के अतुलनीय 20 साल, देखें एक सामान्य कार्यकर्ता से PM तक का सफर
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नई दिल्ली: देश के पीएम नरेंद्र मोदी ने आज 7 अक्टूबर 2021 को संवैधानिक पद पर रहते हुए 20 साल पूरे कर लिए हैं. इन 20 वर्षों में वह 12 साल से अधिक गुजरात के सीएम रहे और अभी 7 वर्षों से अधिक समय से देश के PM हैं. वो तारीख 7 अक्टूबर 2001 थी जब नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने गुजरात के सीएम के रूप में शपथ ग्रहण की थी. तब से लेकर आज तक पीएम मोदी बिना कोई छुट्टी लिए निरंतर संवैधानिक पद पर कायम हैं. साथ ही इस काखंड में वे एक भी चुनाव हारे नहीं हैं. सार्वजनिक सेवा के 20 वर्षों के लंबे कालखंड में निजी से लेकर प्रशासनिक जीवन की कई चुनौतियों का उन्हें सामना करना पड़ा, तो इसी दौरान उन्हें जनता से अपार प्रेम भी मिला. भारत जैसे देश, जहां की सियासी जमीन बेहद उबड़खाबड़ है, वहां उन्होंने अपने बल पर लगातार 2 आम चुनावों में रिकॉर्ड बहुमत से जीत दर्ज की. मोदी भारतीय सियासत के वो केंद्र बन गए, जहां से उनके समर्थक कहते हैं कि लाइन यहीं से शुरू होती है.

आज पीएम मोदी सोशल मीडिया में खासे लोकप्रिय हैं. ट्विटर-फेसबुक पर उनके फॉलोअर्स कई देशों की आबादी से भी अधिक हैं. कुछ वर्ष पूर्व जब उन्होंने महिला दिवस से पहले मात्र इशारा किया था कि वे सोशल मीडिया छोड़ने के बारे में विचार कर रहे हैं, तो हड़कंप मच गया था. पीएम मोदी गजब के कम्युनिकेटर हैं, वे लोगों के अटेंशन को कमांड करना जानते हैं और इसी के बल पर वे अभी भारतीय सियासत का केंद्र बने हुए हैं. 26 मई 2014 को पीएम पद की शपथ ग्रहण करने वाले नरेंद्र मोदी 2692 दिनों से देश पर शासन कर रहे हैं. वहीं, यदि सीएम पद की बात करें तो उन्होंने 7 अक्टूबर 2001 को गुजरात के CM पद की शपथ ग्रहण की थी और 22 मई 2014 तक इस पद पर रहे. इस तरह वह बतौर मुख्यमंत्री 4607 दिन पद पर रहे. अभी भी देश के प्रथम PM जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और डॉ मनमोहन सिंह का कार्यकाल नरेंद्र मोदी के मौजूदा कार्यकाल से अधिक है. नेहरू कुल 6130 दिन देश के प्रधानमंत्री रहे. इसके बाद नाम आता है इंदिरा गांधी का, जिन्होंने 5829 दिन शासन किया. फिर डॉ मनमोहन सिंह का नंबर है, जो 3656 दिन पीएम रहे. लेकिन सीएम बनने से पहले 80 और 90 के दशक में नरेंद्र मोदी भाजपा के एक साधारण कार्यकर्ता हुआ करते थे. RSS से तो उनका पहले से ही नाता था. दो दिन पहले ही पीएम मोदी ने गांधीनगर चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत पर जनता को शुक्रिया कहा था. 1987 में स्वयं मोदी ने अहमदाबाद निगम चुनाव में भाजपा के जीत तय की थी. उन्होंने यहां अपनी प्रबंधन क्षमता का कमाल दिखते हुए कमल खिलाया था. उनके कौशल ने पार्टी का ध्यान खींचा और दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी, जो 1986 में पार्टी प्रमुख बन चुके थे, उन्होंने अहमदाबाद में इस जीत के बाद 1987 में मोदी को पार्टी का गुजरात का संगठन सचिव बना दिया. 

सामान्य कार्यकर्ता से गुजरात के CM तक :-

इसके बाद से भाजपा में मोदी का कद लगातार बढ़ता रहा. उन्होंने 1990 में आडवाणी की रथ यात्रा और 1991-92 में मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई. ये यात्राएं और इनका अनुभव मोदी को जन नेता के रूप में गढ़ने में बड़ा काम आया. 1995 के गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अपने प्रबंधन का करिश्मा दिखाया. पार्टी को इस चुनाव में भी जीत मिली, इसी के साथ मोदी का भाजपा में प्रमोशन हुआ और उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली भेज दिया गया. यहां पर उन्हें हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में पार्टी गतिविधियों की कमान सौंपी गई. 1998 में गुजरात की सियासत तेजी से बदली, भाजपा के कद्दावर नेता शंकर सिंह बघेला कांग्रेस में शामिल हो गए. राज्य में मध्यावधि चुनाव हुए और केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री बने. राज्य में केशुभाई पटेल की सरकार चल ही रही थी कि जनवरी 2001 में गुजरात के भुज में कई लोगों की जिंदगी निगल जाने वाला भूकंप आया.  इस आपदा से निपटने के दौरान सरकार की छवि को काफी क्षति पहुंची. भाजपा नेतृत्व को गुजरात की चिंता सता रही थी. तब अटल बिहारी वाजपेयी देश के PM थे. राज्य में अगले साल के अंत में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित थे. इस बीच भाजपा हाई कमान ने गुजरात का सीएम चेहरा बदलने का फैसला ले लिया था. योग्य चेहरे की तलाश की गई तो पार्टी की नजरें नरेंद्र मोदी पर जाकर रुकीं. दरअसल इससे पहले केशुभाई पटेल, नरेंद्र मोदी को गुजरात की सियासत में हाशिये पर धकेल चुके थे. गुजरात भाजपा में बगावत जैसे हालत थे. इसी उधेड़बुन में मोदी साल 2000 में अमेरिका दौरे पर चले गए थे. 2001 में गुजरात भूकंप के बाद भाजपा ने जब राज्य का नेतृत्व बदलने की सोची, तो वाजपेयी को मोदी याद आए. बताया जाता है कि 1 अक्टूबर को नरेंद्र मोदी दिल्ली में एक कैमरामैन के अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे. तभी उनके फोन की घंटी बजी और उनसे कहा गया कि वे पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात कर लें. इसके बाद अटल जी ने उन्हें गुजरात की जिम्मेदारी दी.  दरअसल इस फोन कॉल ने सक्रिय राजनीति में मोदी की एंट्री के लिए कई रास्ते खोल दिए और इसी के साथ भारत की राजनीति एक प्रस्थान बिंदु पर पहुंच चुकी थी.

7 अक्टूबर 2001 को नरेंद्र मोदी ने गुजरात के सीएम पद की शपथ ग्रहण की. मोदी भुज भूकंप के प्रभावों से निपट ही रहे थे कि फरवरी 2002 में गोधरा ट्रेन कांड हो गया. इसके बाद गुजरात साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलसने लगा. गुजरात दंगों ने देश के सामाजिक ताने-बाने को काफी क्षति पहुंचाई. इन्हीं दंगों के बाद तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजयेपी ने सीएम नरेंद्र मोदी को 'राजधर्म' निभाने की हिदायत दी थी. गुजरात हिंसा की कड़ी आलोचनाओं, न्यायिक प्रक्रिया से बाहर निकलकर मोदी ने अपने लिए सख्त प्रशासक की छवि गढ़ी. उन्होंने राज्य में बिजली की समस्या, पेयजल की दिक्कत दूर की. साबरमती नदी का कायाकल्प करवाया. मोदी ने गुजरात में निवेश आकर्षित करने लिए वाइब्रेंट गुजरात समिट करवाई. केंद्र में UPA-2 की सरकार के दौरान गुजरात मॉडल वो पैमाना बन गया, जिसके आधार पर दूसरे राज्यों का विकास मापा जाने लगा. गुजरात मॉडल की इतना चर्चित हुआ कि मोदी 2014 के आम चुनाव के लिए प्रधानमंत्री का चेहरा बनकर उभरे. 2009 में 'पीएम इन वेटिंग' रहे आडवाणी नरेंद्र मोदी के उत्कर्ष से खफा थे, मगर वे उन्हें रोक नहीं पाए. मोदी एक के बाद एक 2002, 2007 और 2012 का गुजरात चुनाव जीतकर कांग्रेस और गांधी परिवार को चैलेंज करने का आधार बना चुके थे.

जनता ने मोदी के चेहरे पर बरसाए वोट :-

2013 में पार्टी ने मोदी को PM फेस घोषित कर दिया. मई 2014 में पीएम मोदी ने गुजरात से दिल्ली की हैरतअंगेज़ सियासी यात्रा की. उनके नेतृत्व में हुए इस चुनाव में भाजपा ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई. कहा तो जाता है कि इस चुनाव में भाजपा का चुनाव चिह्न भले ही कमल रहा हो, किन्तु लोगों ने मोदी के चेहरे को देखकर वोट किए थे. ये वो चुनाव था जो बूथ पर लड़ा तो गया ही, साथ ही सोशल मीडिया भी इस चुनाव का बैटलग्राउंड रहा. ये भारत का पहला चुनाव था जहां, फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्एप जबरदस्त असरदार हो गए थे और नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया को अपने फायदे में शामिल करने के हुनर के उस्ताद साबित हुए. 


पीएम बनने के बाद मोदी ने जनधन योजना जैसा नवाचार शुरू किया और देश की करोड़ों की आबादी का बैंक अकाउंट खुलाकर उन्हें बैकिंग सिस्टम से जोड़ दिया. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 41 करोड़ लोगों के जन-धन अकाउंट खुले हैं. इन खातों के चलते सरकारी योजनाओं का फायदा सीधे लाभुक के खाते में पहुंचने लगा. 20 वर्ष काफी लंबा समय होता है. किसी भी लोक प्रशासक के लिए ये इतना समय तो होता ही है कि उसकी नीतियों की झलक और असर आम जनता के जीवन में दिखने लगे. PM के कामकाज की समीक्षा भी इसी तरह होती है.  इसके अलावा पीएम मोदी ने मुद्रा योजना, जन सुरक्षा बीमा योजना, उजाला योजना, UPI, पीएम आवास योजना, सौभाग्य योजना, आयुष्मान भारत, किसान सम्मान निधि जैसी कई योजनाएं लॉन्च की हैं. इन योजनाओं का लाभुक वो वर्ग है, जो अमूमन हर सुविधा से वंचित ही रहा है. नरेंद्र मोदी ने इन योजनाओं की बदौलत जमकर वोटों की फसल काटी. 2019 के लोकसभा चुनाव, यूपी विधानसभा चुनाव, बिहार विधानसभा चुनाव, झारखंड, हिमाचल और उत्तराखंड के चुनाव में उन्हें इस वर्ग से बंपर वोट मिले और मोदी पहले से भी अधिक सीटों के साथ भाजपा को जिता ले गए. इस बीच पीएम मोदी के सामने CAA-NRC, शाहीनबाग़, पेगासस, राफेल जैसे मुद्दों पर कई चुनौतियां आईं, लेकिन उनका इतना अधिक असर नहीं हुआ, हालांकि,  मौजूदा समय में जारी किसान आंदोलन जरूर मोदी सरकार के गले की फांस बना हुआ है. अब देखना ये है कि सियासत का ये जादूगर किसानों की समस्या से कैसे निपटता है.

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