विदेशी लेखकों ने अपनी 17 पुस्तकों में किया है 'भोले की काशी' का गुणगान, आदि विश्वेश्वर के वैभव का भी जिक्र
विदेशी लेखकों ने अपनी 17 पुस्तकों में किया है 'भोले की काशी' का गुणगान, आदि विश्वेश्वर के वैभव का भी जिक्र
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नई दिल्ली: विगत 200 वर्षों में 11 विदेशी लेखकों ने बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी पर वृहद लेखन किया है। इन लेखकों में अधिकतर का आगमन 19वीं शताब्दी के शुरू से आखिर तक हुआ। कुछ लेखकों ने 20वीं सदी के बनारस का लेखाजोखा पेश किया है। अधिकतर ब्रिटेन के लेखकों ने काशी का दौरा किया। 19वीं सदी में यहां आने वाले विदेशी लेखकों के लिए भी काशी के मंदिरों का वैभव कौतूहल का विषय रहा। इन 11 विदेशी लेखकों द्वारा लिखी गई 17 किताबों में आदि विश्वेश्वर, विश्वेश्वर, काशी विश्वनाथ समेत अन्य शिवालयों के संबंध में शोधपूर्ण लेखन देखने को मिलता है। सन-1820 से 1983 के बीच काशी आने वाले प्रमुख लेखकों में जॉन मर्डक, सैमुअल बील, सेरिंग मैथ्यू, मायर्स हेनरी, राल्प फिच, पार्कर आर्थर, एडविन ग्रीव्स, नेविल एचआर का नाम शामिल हैं।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रो. एके सिंह बताते हैं कि विगत दो सौ वर्षों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण और विस्तृत लेखन जेम्स प्रिंसेप ने किया है। वह ब्रिटिश एशियाटिक सोसाइटी के सबसे कम आयु के फेलो थे। उन्होंने बनारस में अपने जीवन के दस वर्ष बिताए थे। इस अवधि में उन्होंने ज्ञानवापी से लेकर काशी में घाट किनारे बने तमाम मंदिरों के बारे में न केवल लेखन किया बल्कि उनके स्केच भी तैयार किए। उन्होंने ‘बनारस इलस्ट्रेटेड’ समेत आधा दर्जन पुस्तकें लिखीं। कर्मनाशा नदी पर पहला पुल जेम्स प्रिंसेप के ही सामने बना। काशी का भूमिगत ड्रेनेज सिस्टम भी उन्हीं के निर्देशन में तैयार हुआ।

1830 में जेम्स के काशी से जाने के लगभग 27 वर्षों के बाद लंदन के जॉन मर्डक बनारस आए। उन्होंने अपनी किताब ‘काशी ऑर बनारस : द होली सिटी ऑफ हिंदूज’ में यहां के मंदिरों का उल्लेख किया है। वर्ष 1868 में ब्रिटेन के सेरिंग मैथ्यू बनारस आए। मिशनरी के लिए कार्य करने वाले मैथ्यू ने ‘द सेक्रेड सिटी ऑफ द हिंदूज’, ‘बनारस एंड इट्स एंटीक्विटीज’, ‘डिस्क्रिप्शन ऑफ बुद्धिष्ट’, ‘हैंडबुक फार विजिटर्स टू बनारस’ और ‘रन्स एट बकरिया कुंड’ नामक पुस्तकें लिखीं। ‘रन्स एट बकरिया कुंड’पुस्तक में उन्होंने बकरिया कुंड (वक्रार्क कुंड) से संबंधित मिथकों के संबंध में विस्तार से लिखा है। 

1884 में ब्रिटेन के सैमुअल बील और उनके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के बड़े अधिकारी के तौर पर मायर्स हेनरी का काशी आना हुआ। उन्होंने अपना लेखन मंदिरों के साथ बनारस के जनजीवन में गंगा के महत्व पर फोकस किया। 1899 में ब्रिटेन के राल्प फिच ने ‘इग्लैंड पाइनियर टू इंडिया एंड बर्मा’, 1901 में लंदन के पार्कर आर्थर ने ‘हैंडबुक ऑफ बनारस’ और 1909 में ब्रिटेन के एडविन ग्रीव्स और नेविल एचआर ने संयुक्त रूप से ‘बनारस द गजेटियर’ नामक किताब लिखी, जिनमे काशी का वैभव दर्शाया गया है। लेकिन यह विडम्बना ही है कि, शिव की जिस काशी को भारतीय धर्मग्रंथों से लेकर विदेशी लेखकों ने भी अपनी पुस्तकों में सर्वोपरि रखा, उसी काशी के लिए आज अदालतों में सबूत पेश करने पड़ रहे हैं। 

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