यूँ ही कोई बेचारा नही बनता

यूँ ही कोई बेचारा नही बनता राख से शरारा नहीं बनता । चाहे जितनी उड़ान भर ले आकाश घर द्वारा नहीं बनता । मजबूरी आदमी की कैसी है खुद का वो सहारा नहीं बनता । कांधों पे बिठा घूंमें औलादें अब वो नजारा नहीं बनता । रोज टूटते है तारे लाख मगर अब नया सितारा नहीं बनता । यूँ लाख जनमते है धरती पर कोई आँख का तारा नहीं बनता। हृदयेश अजब सी है तेरी बातें पर बातों से दुधारा नहीं बनता ।

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