यह गरीब की मज़बूरी

पहले बस्ती के बच्चों संग,मैं आवारा फिरता था, छोटी मोटी चोरी और जेब तराशी करता था। जब मैं थोड़ा बडा हुआ तो माता ने यह समझाया, चोरी करना बुरी बात है, मेहनत का पाठ पढाया। रूपये पैसे की तंगी से नित,घर में होता था झगड़ा , सब परिवार दुखी रहता,था रोज़-रोज़ का लफ़डा़। घर में आमदनी थी थोड़ी, ऊपर से भारी मंहगाई, तन ढकने को कपड़े नहीं थे ,कैसे भूख मिटाई ? मेंने मज़बूरी के चलते ,खुद मजदूरी करने की ठानी, ऐक ढाबे पर काम मिल गया ,खूब था खाना-पानी। सारे घर में खुशियाँ छाईं ,मिलजाने से मुझको काम, मेरी दुनियां बदल गई वहाँ, छोटू हो गया मेरा नाम। पढ़ू लिखूं सम्मान मिले, ये मेरा भी मन करता है, रोज कमाने जाता हूँ, तब घर मे चूल्हा जलता है। भीख मांगने से तो अच्छा है,मेहनत करके खाना, कब तक कर्जा लेकर खायें, इससे भला कमाना। जब तक देशमें रहे गरीबी ,बंद न होगी बाल मजूरी, ये शौक नहीं है बच्चों का,है यह गरीब की मज़बूरी।

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