किसी को चुपड़ी चार मिली है किसी को केवल भात मिली सातवें वेतन की मोदी जी ये कैसी सौगात मिली लम्बा अरसा बीत गया इस वेतन की तैयारी में जैसे कोई सजनी देख रही साजन की बाट अटारी में लेकिन जब साजन आये तो आँखों से नीर बहाया है ये कैसी वेतन वृद्धि है कोई समझ ही नहीं कुछ पाया है है यही तुम्हारे अच्छे दिन तो इनको वापिस ले जाओ केवल इतिहास को दोहरा कर बस वेतन वृद्धि दे जाओ मन करता छोड़ नौकरी को मैं भी अब चाय बनाऊँगा फिर मोदी जी की तरह एक दिन विदेश घुमने जाऊँगा चाँद पूर्णिमा का आया है या फिर काली रात मिली सातवें वेतन की मोदी जी ये कैसी सौगात मिली अरुण जेटली जी तुमने ये कैसा नियम निकाला है वेतन वृद्धि गलफांस बना जैसे कोई विषधर काला है सड़कों पर जाने को तुमने अब कैसी ये मजबूरी की वेतन वृद्धि दी सबको या सबको बस मजदूरी दी इतिहास को शर्मसार करके उन साठ साल को भुला दिया मर भी न सकें जी भी न सकें इस मीठे जहर को पिला दिया कोई चाहे कुछ भी बोले मेरे मन में बस एक पीड़ा है ये वेतन वृद्धि नहीं ऊँट के मुँह में थोड़ा जीरा है विश्वास बहुत था लोगो को पर ये तो केवल घात मिली सातवें वेतन की मोदी जी ये कैसी सौगात मिली वेतन वृद्धि नहीं मिले बस इतना काम करा दो तुम आटे दाल के भावों को बस फिर से आधे ला दो तुम हर कर्मचारी के बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवा दो तुम रहने को आवास सभी को बिना शुल्क मिलवा दो तुम रेलगाड़ी के डिब्बे में जनरल डिब्बे बढ़वा दो तुम A C बस में सफर कर सके मासिक पास बना दो तुम इतने काम करा दो सबको तब समझेंगे दिन अच्छे कर्मचारी भी खुश होंगे कहलाओ हितैषी तुम सच्चे वादे पूरे कर दो या फिर समझेंगे बस बात मिली सातवें वेतन की मोदी जी ये कैसी सौगात मिली