ये गम के चिराग हैं

दर्द ऐ दिल में आह के साथ अश्क निकल गए ये गम के चिराग हैं कभी जल गए तो कभी बुझ गए अपनी आग में जो जल न सके परायी में जल गए परवाने की उल्फ़त शमां से देखो लों में जल गए जो फना हुआ इश्क ऐ गम में वो जन्नत को चले गए दर्द को तकसीम करके देखा उल्फ़त के दिन चले गए कैसे दिखाते दर्द ऐ गम हयात जमाने का पहरा था तम में अश्क़ों के चिराग कभी बुझ गए कभी जल गए बेदर्द जमाने में रुसवाई ही सिर्फ हिस्से में आयीं  अश्क हमारे बहे उनके घर के शब ऐ चिराग जल गए

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