ये दुनिया मेरे मुक़ाबिल नहीं

ज़ोर और ज़ब्र से हासिल नहीं हुयी अब तक। ये दुनिया मेरे मुक़ाबिल नहीं हुयी अब तक।। जुदा-जुदा सा कुछ तो है अभी मुझमें तुझमें। तू मेरी रूह में शामिल नहीं हुयी अब तक।। समंदर हो गयी है , मेरी नज़र तेरे लिए। मेरी कश्ती का तू साहिल नहीं हुयी अब तक।। भूल जाये बड़ा छोटा अदब तहज़ीब सब कुछ। शायरी इतनी भी जाहिल नहीं हुयी अब तक।। सुना है जब से ठोकर मार दी खुवाइश को मैंने। किसी रस्ते की वो मंजिल नहीं हुयी अब तक।। जश्न हो इतनी गुंजाईश तो छोड़ आया था। न जाने क्यों वहाँ महफ़िल नहीं हुयी अब तक।।

Related News