अंतड़ियों में घुस रहा पेट आँखों में लेकर प्रश्न अनेक चिथडो़ं में लिपटी छाया सी कंकाल बनी वह घूम रही बिखरे बाल कृष काया थी यमराज से सांसें छीन रही कचरे में से कुछ बीन रही हाथ में लेकर टूटी टहनी कुत्तों से छीन रही खाना कुत्ते भी राह छोड़ देते यहसब होता था रोजाना पीठ पर कचरे की झोली गलियों में भटक रही भोली यदि यहाँ वहाँ पड़ी हुई उसको झूठन मिलजाती थी आँखों में चमक आ जाती थी वह उसका भोजन बन जाती थी क्या यह भी भारत की माता है? भारत से इसका भी नाता है ? हम जगह जगह झंडा गाढ़े क्या इसी की जय बोलते हैं ? क्या इसकी लाज बचाने को सीने पर गोली झेलते हैं ? या वो कोई और ही भारत माता है जिससे हम सबका नाता है? क्या वह ऐसी नहीं दिखती है? सदा अदृश्य ही रहती है ? क्या अपना तन नहीं ढकती है? क्या भूख उसे नहीं लगती है? जिसकी लाज बचाने को सीमाओं पर गोली चलती हैं क्या वह भी चलती फिरती है या बस नक्शे में ही दिखती है क्या उसे किसी ने देखा है ? या वह केवल ऐक कल्पना है ? और मात्र काल्पनिक रेखा है जब निर्जीव ज़मीन के टुकड़े को हम भारत माँ का दर्जा देते हैं तो उस माँ की जिंदा संतानों की क्यों इतनी अनदेखी करते हैं ? क्यों भारत माता के नारे पर, हम लोग सियासत करते हैं ?