यारों अपने बस की बात कहाँ

दिल आने की बात है यारों अपने बस की बात कहाँ प्यार अगर हो पत्थर से फिर हीरे की ओकात कहाँ कितना हसीन मौसम था जब वो मेरे सामने रहती थी अब वो ख्वावों में भी मिल जाये ऐसे हालात कहाँ तन्हाई में रोने से भी दिल की आग कहाँ बुझती है हैरान हो जाता हूँ मेरे अश्कों की बरसात कहाँ  दर्द मोहब्बत मिल जाये तो रख लेना सर आँखों पर इस दुनियां में इससे बढ़कर कोई सौगात कहाँ मैं ये सोचकर उन गलियों से नाज उठाये फिरता हूँ  क्या मालूम उस बेबफा से हो जाये मुलाक़ात कहाँ छोड़ो ये गम की बातें उसका दिल नहीं पिघलेगा वो तो एक पत्थर है उसके सीने में जज्बात कहाँ

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