हमारे देश में धर्म-कर्म ,संस्कृति ,सभ्यता आदि की बहुत अधिक महत्वता हैं इन सब चीजों में हमारा देश अग्रणीय रहा हैं, धर्म कर्म के चलते हिन्दू धर्म में माता रानी की उपासन के लिए नौ दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं और इन्हीं दिनों में माता के अलग,अलग रूपों की उपासना की जाती हैं . नवरात्र के नौ दिन दुर्गा मां के भक्तों के लिए अपने नौ ग्रहों को शांत कराने का अहम मौका होता है. नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा होती है.नवदुर्गा का पांचवां स्वरूप स्कंदमाता का है.कार्तिकेय (स्कन्द) की माता होने के कारण इनको स्कन्दमाता कहा जाता है. स्कंदमाता का स्वरूप : शक्ति के इस स्वरूप की उपासना पांचवें दिन की जाती है.देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कन्द यानी भगवान कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है. ये शक्ति व सुख का एहसास कराती हैं. ये सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसी कारण इनके चेहरे पर तेज विद्यमान .इनका वर्ण शुभ्र है. माता चार भुजाधारी कमल के पुष्प पर बैठती हैं। इसलिए इनको पद्मासना देवी भी कहा जाता है। जिन लोगों को संतान नहीं हो पा रही हो या जिनको संतान संबंधी समस्या हो रही हो ऐसे लोगों के लिए इनकी पूजा विशेष शुभ होती है। जिनकी कुंडली में बृहस्पति कमजोर हो ऐसे लोग स्कंदमाता की पूजा जरूर करें। स्कंदमाता की पूजा विधि : नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधि-विधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाती है. स्कंदमाता की पूजा में पीले फूल अर्पित करें. चने की दाल, मौसमी फल और केले का भोग लगाएं. अगर पीले वस्त्र धारण किए जाएं तो पूजा के परिणाम अति शुभ होंगे. इनकी पूजा का सामान्य मंत्र है – "ॐ स्कंदमाता देव्यै नमः" स्कंदमाता की पूजा से संतान की प्राप्ति सरलता से हो सकती है. संतान सम्बन्धी सारी समस्याओं का अंत हो सकता है. अगर बृहस्पति कमजोर हो तो मजबूत हो जाता है. शिक्षा और ज्ञान में भी लाभ होता है. विशेष मंत्र “ॐ ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मये नमः"