गर्भावस्था मे डायबीटीज़ का खतरा

भारत में हर सौ में से 20 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं गर्भ के डायबिटीज की शिकार हो जाती हैं। इस दौरान गर्भावस्था में उन्हें ब्लड शुगर नियंत्रित करने में काफी दिक्कत होती है। वैसे हमारे भारत में करीब 50 लाख लोग मधुमेह जैसी खतरनाक बीमारी से पीडि़त हैं। जब शरीर में पैक्रियाज उतना इंसुलिन नहीं बना पाता, जितनी शरीर को जरूरत होती है, ऐसे में डायबिटीज जैसी बीमारी उत्पन्न होने लगती है। गर्भवती महिलाओं में भी यहीं स्थिति होती है। फर्क सिर्फ इतना हैं कि आम इंसान में जब मधुमेह जैसी बीमारी होती है, तो जीवन भर वह इससे पीडि़त रहता है। गर्भावस्था में होने वाले डायबिटीज की प्रसव के बाद खत्म होने की संभावना जयादा रहती है। पचास फीसदी महिलाएं आने वाले दिनों में जीवन भर के लिए मधुमेह से पीडि़त हो सकती हैं। 

भारत में महानगरों के साथ बड़े शहरों में यह बीमारी बढ़ती जा रही है। इसलिए डॉक्टर अब गर्भवती महिलाओं की ब्लड ग्लूकोज की जांच नियम से करवाने लगे हैं। चार महानगरों में यह बीमारी सबसे ज्यादा कोलकाता में फैल रही है। डॉक्टर डायबिटीज के लिए पश्चिमी जीवनशैली को जिम्मेदार मानते हैं। उन औरतों में, जो मोटापे की शिकार हैं या लगातार डेस्क जॉब में हैं या वे महिलाएं जो 30 साल की उम्र के बाद गर्भवती होती हैं, उनमें जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा ज्यादा होता है।

एक सर्वे के मुताबिक अकेले कोलकाता में पूरे औसत का पांच से दस प्रतिशत महिलाएं जेस्टेशनल डायबिटीज से पीडि़त हैं। ज्यादातर महिलाएं गर्भावस्था के दौरान अपना ब्लड ग्लूकोज टेस्ट करवाना पसंद नहीं करतीं या फिर शायद वे इस बात से डरती हैं कि कहीं उन्हें ब्लड शुगर तो नहीं जेस्टेशनल डायबिटीज से पीडि़त गर्भवती स्त्री के होने वाले बच्चे की सेहत का खतरा हमेशा बना रहता है। बच्चे का वजन ज्यादा हो सकता है। इससे सामान्य प्रसव में उसकी हड्डियों को नुकसान पहुंच सकता है।

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