कातिल से वो मेरी खबर पूछते हैं फिर ज़माने से मेरा सबर पूछते हैं उजाड़ते हैं खुद ही बहार ए चमन कैसा है ख़ुलूस ए बशर पूछते हैं बुझा के शाम ही से रौशन चिराग कितनी देर में होगी सहर पूछते हैं न रास्ता पता है न ठिकाना कोई वो मुझसे क्यों मेरा सफ़र पूछते हैं सज़ा देते हैं मेरी रज़ा पूछ कर के लगता है ‘अमूल’ क्या डर पूछते हैं देते हैं वो खुद ही ज़हर आ कर वो फिर कितना हुआ है असर पूछते हैं....