क्यों नहीं चढ़ाती स्त्रियां शनिदेव पर तेल

त्रिदेवों के काल में शनि नामक भी एक देवता थे. शनि को सूर्यदेव का पुत्र माना गया है. शनि के जन्म के संबंध में शास्त्रों में बताया गया है कि सूर्य की पत्नी छाया ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या किया. तपस्या की कठोरता और धूप-गर्मी के कारण छाया के गर्भ में पल रहे शिशु का रंग काला पड़ गया.

शनिदेव की दृष्टि जिस पर भी पड़ जाती है उसके जीवन में बुरे दिन शुरू हो जाते हैं. यही कारण है कि सभी शनिदेव से दूर ही रहते थे.शिव, राम, रावण और अन्य तमाम देवी और देवता उनकी दृष्टि से बचते रहते हैं. इसका यह मतलब नहीं की उनकी दृष्टि खराब है या वे बहुत ही शक्तिशाली हैं.

दरअसल ऐसा उनकी पत्नी द्वारा दिए गए एक शाप के कारण होने लगा. ब्रह्मपुराण के अनुसार इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया.इनकी पत्नी परम तेजस्विनी थी. एक रात वे पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुंचीं, लेकिन शनिदेव तो ध्यान में निमग्न थे. पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई. उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया. इसलिए पत्नी ने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा.

लेकिन बाद में पत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किंतु शाप के प्रतीकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे. क्योंकि ये नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो. यही कारण है कि शनिदेव की नजर अशुभ मानी जाने लगी. इसी कारण परंपरावश शनि शिंगणापुर में किसी स्त्री को तेल नहीं चढ़ाने दिया जाता है, क्योंकि यह भय है कि कही शनिदेव की दृष्टि किसी स्त्री पर पड़ कर उसका अनिष्ट न हो. हालांकि यह कहा जाता है कि जब भी शनिदेव की पूजा की जाए या उनको तेल चढ़ाया जाए तो उनकी आंखों में या उनकी मूर्ति को नहीं देखना चाहिए.

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