काले धन वालों को अपना धन सफ़ेद करने का मौका फिर से क्यों ?

आज यह सवाल कई मंचो से, TV चैनलों या सोशल मीडिया की बहसों में पूछा जा रहा है कि "एक ओर तो मोदी सरकार बार-बार कहती है कि अब काले धन वालों की खैर नहीं; दूसरी ओर उन्हें स्वेच्छा से काला धन घोषित करके व टेक्स देकर अपने शेष धन को सफ़ेद करने और क़ानूनी कार्यवाही से बचने का मौका देती है। यह तो फिर दोमुंहा व्यवहार या काले धन वालो को बचाने की स्किम नहीं है क्या ?" सवाल बिलकुल वाजिब है। पर इसका उत्तर दुविधाभरा है; कोई सीधा या आसान नहीं है । हर प्रकार से तौलकर विशेषकर देश के दीर्घकालीन हितो को देखकर यदि इसका उत्तर दिया जाए तो मुझे लगता है, कि यह दूसरा मौका भी देशहित में सोच-समझकर ही दिया जा रहा है । ऐसा क्यों और कैसे, यही समझाने का प्रयास मैं इस लेख द्वारा कर रहा हूँ !

सबसे पहले तो हम काले धन का अर्थ व मोटे तौर पर उसका स्वरुप समझ लें। स्पष्ट कर लें कि अधिकांश काला धन अनैतिक (हमारे समाज की मान्यतानुसार) या बुरे तरीको से कमाया नहीं होता । वह वैध व्यवसायों द्वारा ही कमाया जाता है; पर उनमें असली कमाई को पूरा दिखाया नहीं जाता है और यह सही आय को छुपाने से इकट्ठी हुई कमाई ही काला धन होती है । काले धन की परिभाषानुसार वह धन जिसे सरकार को पेश दस्तावेजो में कमाई के रूप में दिखाया नहीं जाता और उस पर लागू कर नहीं चुकाए जाते हैं, वह काला धन होता है । आप सोचेंगे तो पाएंगे कि केवल गलत व्यवसायों में लगे लोग, उद्योगपति व व्यापारी ही नहीं बल्कि अधिकांश प्रतिष्ठित हॉस्पिटल/ स्कुल चलाने वाले, डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, CA, प्रॉपर्टी-डीलर व ट्यूशन देने वाले प्रोफेसर भी कुछ न कुछ टेक्स बचाकर काला धन बना रहे है । यह धारणा बिलकुल गलत है कि कालाधन केवल 1% लोगों के पास है, व्यावहारिक समझ वाले विशेषज्ञओ के अनुमान के अनुसार देश में काले धन वाले लोग 3% से भी अधिक है । इस प्रतिशत को असल में संख्या में समझे बिना हम इसके वृहत आकार को नहीं समझ पाएंगे ।

हमारे देश में आबादी के केवल 1% का मतलब है 1 करोड़ 30 लाख और 3% से अधिक का मतलब है करीब 4 करोड़ लोग । यानि स्पष्ट है कि फिलहाल जितने लोग आयकर चुका रहे हैं उससे तीन गुना अधिक लोग कर योग्य आय होते हुए भी उसे नहीं बता रहे हैं । आयकर ही नहीं कई अन्य प्रकार के करों की भी चोरी कर रहे हैं । इस प्रकार का काला धन इतनी विशाल मात्रा में देश में प्रचलित है कि उसके लेनदेन ने एक समानांतर अर्थ-व्यवस्था खड़ी कर दी है । यह समानांतर अर्थव्यवस्था ही कई तरह से देश के लिये बड़ी समस्या है । इसे ख़त्म करना ही सरकार का एक प्रमुख उद्देश्य है । ऐसी अर्थ-व्यवस्था के चलते ये 3% लोग ही देश के 90% संसाधनों पर प्रभुत्व जमाये रखते है तथा वे संसाधन शेष 97% जनता की पहुँच से बाहर रहते हैं ।

थोड़ी देर के लिए, यदि हम यह भी मान लें कि जो 1.25 करोड़ लोग आयकर भर रहे हैं, वे अपनी आय सही-सही बताकर पूरा टेक्स भर रहे हैं तो भी कम से कम 2.75 करोड़ लोग ऐसे है, जिनके पास कुछ न कुछ काला धन है । यह भी ध्यान रखना जरुरी है कि स्वेच्छा से संपत्ति घोषित करने की योजना में केवल नकदी ही नहीं सभी प्रकार की अघोषित संपत्ति को घोषित करने की बात कही गयी है । परंतु, यह सही है कि फिलहाल इन लोगों के सामने नकदी काले धन को लेकर ही अधिक डर है इसलिए जिनके पास अभी काफी मात्रा में नकदी काला धन है वे ही डरकर इस योजना में अपना धन घोषित करेंगे । फिर भी करीब 1 करोड़ लोग ऐसे हो सकते है, जिनके पास अन्य रूपों में नहीं बल्कि नकदी के रूप में (तिजोरी व बैंक में मिलाकर) काफी काला धन है और वे ही इस योजना के प्रमुख लक्ष्य हैं । इसलिए सबसे पहले तो हम यह समझ लें कि सभी काले धन वाले बुरे या अनैतिक काम करने वाले नहीं हैं और सारा काला धन बुरे कामों में लगा हुआ नहीं है । बहुत सा काला धन अच्छे कामों (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, आदि ) और रोजगार देने वाले कामों में भी लगा हुआ है । बस गड़बड़ यही है उसका सही-सही हिसाब नहीं दिया जाता है और उस पर निर्धारित कर नहीं चुकाया जाता है । इसलिए यदि ऐसे काले धन वालों को अपना धन घोषित करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, तो यह कोई बड़े अपराधियों को बचने का मौका देने जैसी बात नहीं है । यह तो केवल जिन लोगों ने थोड़ा टेक्स बचने के लालच में अपनी सही आय नहीं बताई उन्हें अपनी गलती सुधारकर दंड सहित टेक्स अदा करके आगे से सुधरने का मौका दिया जा रहा है ।

काले धन का वह हिस्सा जो हवाला, ड्रग्स, नक्सलवाद, सट्टा, तस्करी आदि गलत कामों द्वारा कमाया गया है; वह तो चूँकि सामान्यतः घोषित किया नहीं जा सकता है; इसलिए अपने-आप ही चलन से या समानांतर अर्थ-व्यवस्था से भी बाहर हो जाएगा । हाँ, यह भी संभव है कि उस अनैतिक धन का भी कुछ हिस्सा झूठे सबूतों से अन्य स्रोत का बताकर घोषित किया जाये ! मेरी राय में तो यह भी बहुत बुरा नहीं होगा क्योंकि इस तरह भी बहुत सम्भावना है कि वह गलत कामों में लगा धन भी आधा तो सही कामों में लग जाए और आधा सरकारी खजाने में आ जाए । और यदि ऐसे लोग फिर से गलत कामों में लगते है तो पहले से सरकार की निगाह में होने के कारण जल्दी पकड़े जाएंगे । इसलिए अब जो घोषित करने लायक कामों से कमाया गया काला धन है उसे लक्षित करना ही ख़ास एवं बड़ा काम है; क्योंकि वह भी करोडो जाने-अनजाने लोगो के पास है । आयकर विभाग अपनी धौंस जमाने के लिये भले ही कहे कि उसके पास अधिकांश लोगो की काली कमाई की जानकारी है । परंतु असल में उसके पास 1.25 करोड़ आयकर रिटर्न भरने वालों के आलावा 50 लाख लोगों से अधिक की जानकारी नहीं हो सकती है । इसका अर्थ है कि उसके पास 2 करोड़ से अधिक काले धन वालों की कोई जानकारी नहीं है । ऐसे में यदि आयकर विभाग, ED, CBI, ACB आदि सरकार की सभी एजेंसिया मिलकर भी अगले छः महीने तक लगातार छापे मारती रहे तो भी वे सभी काले धन वालों तक नहीं पहुँच सकती है । अभी जो कुछ कार्यवाहियां हो रही है वे तो आवश्यकता के सामने चूंटकी भर भी नहीं है । यानि इतना करना उनके बस का ही नहीं है । दूसरी व्यावहारिक कठिनाई यह है कि जहाँ आवश्यकता दो करोड़ से अधिक लोगों को कानून के शिकंजे में लेने की है वहां यदि ये एजेंसिया मात्र दो-तीन लाख लोगों के खिलाफ भी कार्यवाही करेंगी तो देश में कोहराम मच जाएगा और 'इंस्पेक्टर राज' के आरोपो के साथ विपक्षी दल सरकार पर हावी हो जायेंगे । इसलिए काले धन वालों को बार-बार खुद अपना धन घोषित करने का मौका देना एक तरह से सरकार की मज़बूरी भी है और एक मितव्ययी रणनीति भी ।

मज़बूरी को तो मैं पहले समझा ही चुका हूँ अब मितव्ययता (कम खर्च में अधिक परिणाम) के मुद्दे को भी समझ लें । सोचिये यदि हम उपरोक्त दोनों कठिनाइयों को भी दरकिनार कर दें और उन 2 करोड़ लोगों के बारे में जानकारी जुटाने, उन पर छापे मारने, वाकई में काला (अघोषित) धन पकड़ने और उसे 'काला' सिद्ध करने की सारी जिम्मेदारी इन सरकारी एजेंसियों पर ही डाल दें तो ये एजेंसियां कितने समय में और कितने खर्च के बाद यह सब करेंगी ? यानि तब इस प्रक्रिया का कुल सार्थक परिणाम तो बहुत थोड़ा होगा जबकि बदनामी के साथ प्रक्रिया का खर्च बहुत ज्यादा । इसलिए सरकार पहले 'साम, दाम व भय' की मिली-जुली नीति का यह तरीका भी अपनाया रही है कि काले धन वालों को समझा कर, ललचा कर या डरा कर उन्हें खुद ही अपना काला धन घोषित करने के लिये तैयार या मजबूर किया जाये । वह उसके लिये सुरक्षित भी है, अधिक कारगर भी और कम खर्चीला भी । इस बात से बिलकुल इनकार नहीं है कि संभव है कि इस तरीके से पहले की तरह इस बार भी काला धन तो अधिक मात्रा में स्व-घोषित नहीं हो । फिर भी इस बार उम्मीद है कि घोषणा करने वालों की संख्या पहले से अधिक रहेगी । लेकिन आलोचना करने वाले इस बार भी यही कहेंगे कि "इतनी कवायद से भी इतना सा ही मिला" ।

समझने वाली बात यह है कि काले धन को ख़त्म करने का काम ऐसा नहीं है कि बस दो-चार वार में ही सब ख़त्म हो जाये । यह तो एक लंबे युद्ध की तरह है, जिसमें कई तरह के वार या हमले लगातार करते रहना पड़ेगा । इस स्व-घोषणा का अंतिम अवसर देने के बाद सरकार की अगली नीति 'दंड की' यानि छापों, धर-पकड़ व कानूनी कार्यवाहियों की ही होगी । इसके आलावा एक बड़ा मोर्चा विदेशों में मौजूद काले धन को पकड़ने का भी है । जिस पर भी सतत कार्यवाही चल रही है और पूरी सफलता मिलने तक चलती रहेगी ।

                                                                                                          हरिप्रकाश 'विसंत'

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